आखिर क्या है बुद्ध पूर्णिमा का महत्व समझिए आचार्य प्रकाश बहुगुणा से

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।। बुद्ध पूर्णिमा ।।

बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर आपसभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

बुद्ध यह शब्द न केवल बोध का द्योतक है, अपितु चेतना की उस परम स्थिति का बिम्ब है, जहाँ आत्मा अज्ञान के आवरणों को चीरकर ज्ञान की आलोक-धारा से स्वयं को प्रकाशित कर लेती है। इस चराचर जगत में यदि कोई वस्तु परम मूल्यवान कही जा सकती है, तो वह है—ज्ञान। सकल पुरुषार्थ वस्तुतः अज्ञानजन्य विकारों से मुक्त होकर ज्ञान-प्राप्ति की दिशा में ही अग्रसर होते हैं। जो पुरुष आत्मस्वरूप का साक्षात्कार कर, अपने अंतःकरण को विशुद्ध ज्ञान से अभिसिक्त कर चुका होता है, वही वस्तुतः बुद्ध है—जाग्रत आत्मा, प्रकाशमान चेतना, करुणा की मूर्तिमान प्रतिमा।

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भगवान बुद्ध न केवल करुणा के साक्षात् अवतार हैं, अपितु सनातन धर्म-संस्कृति की अक्षुण्ण धारा से अभिन्न रूप से सम्बद्ध भी हैं।
जिस हृदय में अन्य के दुःख और क्लेश को देखकर सहज ही संवेदना की तरंगें उठें, वही दीनबन्धु, वही ईशतुल्य होता है। ऐसी करुणा ही सच्चे बोध की प्रथम सीढ़ी है।

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बुद्ध पूर्णिमा का यह पावन दिवस हमें आह्वान करता है कि हम अपने अन्तःकरण को करुणा, सौजन्य और सहानुभूति से सिञ्चित करें। उपेक्षित, पीड़ित और शोषित जनों के प्रति अपने हृदय में प्रेम और संवेदना का नवप्रस्फुटन करें। यही बुद्ध की सच्ची वन्दना है। आध्यात्मिक साधना के पथ पर सांसारिक यश-अपयश, लाभ-हानि, जय-पराजय आदि द्वंद्वमय वृत्तियाँ केवल छाया-समान हैं। इनसे प्रभावित हुए बिना, दीर्घकाल तक अविचल श्रद्धा और अपरिसीम धैर्य से अपने लक्ष्य की सिद्धि की ओर प्रयाण करना ही साधक की महती साधना है।

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अतः इस शुभ अवसर पर, आइये ! हम आत्म-निरीक्षण करें, आत्मावलोकन करें। क्या हमारे भीतर बोध का आलोक है? क्या हमारे भावों में करुणा है, विचारों में समत्व है, और कर्मों में परोपकार की गन्ध है ? यदि नहीं, तो यही क्षण है, अपने भीतर बुद्धत्व की प्रथम आभा को आमंत्रित करने का—शान्त, गंभीर और सन्नद्ध होकर प्रबुद्ध चेतना की ओर एक नवयात्रा आरम्भ करने का।

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