गया जी में श्राद्ध करने के बाद घर में पिंड दान कर सकते हैं अथवा नहीं बता रहे हैं आचार्य प्रकाश बहुगुणा

🌺गया श्राद्ध के बाद घर में पिंड दान करे या नही-
सभी मित्रो को सादर नमस्कार!बहुत से लोगो के मन मे एक दुविधा रहती है कि गया में श्राद्ध के बाद घर मे पिंडदान करना चाहिए कि नही इसी विषय पर मैं आपसे चर्चा करूंगा और कुछ शास्त्रीय प्रमाण के साथ ,आप कोई भी ग्रंथ उठाकर देख लीजिए सभी मे गया श्राद्ध के महिमा का उल्लेख है पर ये किसी भी शास्त्र मे नही लिखा है कि गया श्राद्ध के बाद घर मे श्राद्ध नही करे।
गया श्राद्ध तो अक्षय तृप्ति कारक है यदि वहां से पितरो को मोक्ष मिल जाता है तो फिर घर में हो रहे मांगलिक कार्य मे नान्दीमुख श्राद्ध क्यों करते हो यदि गया श्राद्ध से पितर मुक्त हो गए है तो फिर श्राद्ध तर्पण किसके लिए?
गया श्राद्ध के बाद ब्रह्मकपाली में श्राद्ध करने का निर्देश है क्योंकि गया में तो अनेक बार जाकर भी श्राद्ध कर सकते है पर ब्रह्मकपाली में पिंडदान के बाद फिर गया में जाकर श्राद्ध नही कर सकते है पर ब्रह्मकपाली में पिंडादान करने से फिर घर मे पिंड नही बनते है पर श्राद्ध का निषेध नही तर्पण, पत्रावली तक श्राद्ध होगा।
गया श्राद्ध का महात्म्य अनेक पुराणों व शास्त्रों में मिलता है पर गया श्राद्ध के उपरांत घर मे श्राद्ध का निषेध किसी भी धर्मग्रंथ में नही है-
🌷तस्मात्सर्वप्रयत्नेन ब्राह्मणस्तु विशेषतः
प्रदद्याद्विधिवत्पिण्डान् गयां गत्वा समाहितः।।(कूर्म पुराण)
अर्थात-मनुष्यों के लिए पितरों के निमित्त पिंडदान करना आवश्यक है,मनुष्य को किसी भी तरह का प्रयत्न कर अपने पितरों के लिए पिंडदान करना चाहिए,खासकर ब्राह्मणों के लिए तो इसे अत्यंत आवश्यक बताया गया है कि वे गया जाएं और वहां श्राद्ध कर पितरों की आत्मा को संतुष्ट करें।
🌺जीवितो वाक्यकरणात् क्षयाहे भूरिभोजनात्
गयायां पिण्डदानञ्च त्रिभिः पुत्रस्य पुत्रता।।(देवी भागवत)
अर्थात- पुत्र का कर्तव्य है कि माता पिता के जीवित रहते हुवे सदैव उनका सम्मान व सेवा करना चाहिए तथा माता पिता के परलोक गमन के बाद उनके निम्मित अवसर मिलने पर गया जी मे तर्पण, पिंडादान,दान ब्राह्मण भोजन आदि करना चाहिए।।
🌺तस्य देशा कुरुक्षेत्रं गया गंगा सरस्वती,प्रभासं पुष्करं चेति तेषु श्राद्धम महफलम।।(निर्णय सिंधु)
अर्थात-कुरुक्षेत्र,गया,गंगा,सरस्वती,प्रभास और पुष्कर में श्राद्ध करने से महाफल मिलता है।।
🌷महाकल्पकृतं पापं गयायां चविनष्यति।।(महाभारत)
अर्थात जो गया कि पुण्य भूमि में जाता है उसके द्वारा किये गए सारे पाप नष्ट हो जाते है।।
🌷तीर्थादष्टगुणं पुण्यं स्वगृहे ददतः शुभे।।(निर्णय सिंधु)
इस श्लोक में स्पष्ठ कर दिया गया है कि तीर्थ से आठ गुना अधिक पुण्य अपने घर मे श्राद्ध करने से होता है।अतः गया आदि तीर्थो में जब भी अवसर मिले अपने पितरो के निम्मित श्राद्ध करे पर उसके उपरांत भी अपने घर मे उनका श्राद्ध करे।
🌷कल्पदेव कुर्वीत समये श्राद्धं कुले कश्चिन्न सीदति। आयुः पुत्रान् यशः स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।। पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते।। देवताभ्यः पितृणां हि पूर्वमाप्यायनं शुभम्।।(गरुड़ पुराण)
अर्थात-समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुखी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है। देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्व है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है।
🌹निष्कर्ष-उपयुक्त धर्म ग्रंथो से आश्रय लेकर यह समझना चाहिए कि गया श्राद्ध करने से पितरो को अक्षय तृप्ति सद्गति की प्राप्ति होती है और उसके उपरांत घर मे एकोदिष्ट व पार्वण श्राद्ध करने का कोई निषेध नही मिलता है अतः पितरो का घर मे श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध तर्पण,पिंडदान,करने से घर परिवार कुटुंब में नित्य निरन्तर आयुष,बल धन धान्य व वंश की वृद्धि होती है।।
अतः जो व्यक्ति श्राद्ध करने में शारीरिक रूप से असमर्थ हो तब गया में पिण्डदान के बाद घर मे श्राद्ध नही कर पा रहा हो तो चलेगा पर जो समर्थ हो उसे पितरो के निम्मित घर पर उनकी पुण्य तिथि व महालया पक्ष में श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करना आवश्यक है।।
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