एकादशी महात्म्य : इंदिरा एकादशी का महत्व बता रहे हैं आचार्य प्रकाश बहुगुणा

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इंदिरा एकादशी व्रत कथा के अनुसार, राजा इंद्रसेन के पिता की आत्मा यमलोक में कष्ट झेल रही थी क्योंकि उनका एक एकादशी व्रत खंडित हो गया था। देवर्षि नारद ने राजा को बताया कि अश्विन माह की इंदिरा एकादशी का व्रत करने और उसके फल को अपने पिता को देने से उन्हें मुक्ति मिलेगी। राजा ने विधिपूर्वक व्रत किया और उनके पिता को बैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई। 
व्रत कथा का सार
सतयुग की कहानी:
सतयुग में इंद्रसेन नाम के एक राजा थे, जो महिष्मती नगरी के शासक थे। वे श्रीहरि विष्णु के परम भक्त थे और अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे। 
नारद मुनि का आगमन:
एक दिन देवर्षि नारद मुनि राजा इंद्रसेन के दरबार में आए। 
पिता का संदेश:
नारद मुनि ने राजा को बताया कि वे यमलोक गए थे, जहाँ उनकी भेंट राजा इंद्रसेन के पिता से हुई। राजा के पिता ने बताया कि एकादशी का व्रत भंग होने के कारण उन्हें यमलोक में पीड़ा सहनी पड़ रही है और उन्हें मुक्ति नहीं मिली है। 
मुक्ति का मार्ग:
पिता ने संदेश भेजा था कि इंद्रसेन इंदिरा एकादशी का व्रत करें और उसका फल अपने पिता को दें, जिससे उन्हें यमलोक से मुक्ति और बैकुंठ धाम की प्राप्ति होगी। 
राजा इंद्रसेन का व्रत:
राजा ने देवर्षि नारद की बताई विधि के अनुसार आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की इंदिरा एकादशी का व्रत किया। उन्होंने पितरों के निमित्त श्राद्ध, ब्राह्मण भोजन, और गौ दान किया। 
पिता को मुक्ति:
राजा के इस व्रत के प्रभाव से उनके पिता को स्वर्ग प्राप्त हुआ। 
वृत का नाम:
तभी से इस व्रत का नाम इंदिरा एकादशी पड़ गया और माना जाता है कि इस व्रत के पालन से पितरों को मोक्ष मिलता है। 
व्रत का माहात्म्य
इंदिरा एकादशी का व्रत करने से पितरों को अधोगति से मुक्ति मिलती है और उन्हें आशीर्वाद प्राप्त होता है।
इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है और अंततः बैकुंठ धाम को प्राप्त ह�