एलिफेंट कॉरिडोर वाधित, गजराज का जीवन संकट में

हाथियों के आवा गमन के लिए एलिफेंट करिडोर अब बाधित होने लगे हैं जिसके चलते हाथियों का निश्चित दिशा में मूवमेंट नहीं होने से उनका जीवन संकट में है और अनेक मामले ऐसे आए हैं जिसमें हाथियों को दुर्घटना में अपनी जान गंवानी पड़ी है एलिफेंट कॉरिडोर को कब्जा मुक्त किए जाने की मांग भी की जा रही है बावजूद इसके इस पर कोई ठोस पहल अब तक नहीं की गई है बड़ा सवाल यह भी है की हाथी आबादी पर आ रहा है या आबादी कॉरिडोर में बना ली गई है कार्बेट व राजाजी टाइगर रिजर्व से लेकर तराई केंद्रीय व तराई पूर्वी वन प्रभाग तक फैले जंगल कभी हाथियों के लिए निर्बाध परंपरागत गलियारों से जुड़े रहते थे। यही गलियारे हाथियों को एक जंगल से दूसरे जंगल तक सहजता से आने-जाने का रास्ता देते थे। लेकिन बीते दो दशकों में इन गलियारों पर सड़क, रेल और मानव बस्तियों ने कब्जा कर लिया है।
वन विभाग के अभिलेख बताते हैं कि राज्य में 11 चिह्नित हाथी गलियारे हैं, जिनमें तराई केंद्रीय व तराई पूर्वी प्रभाग के कई हिस्से शामिल हैं। फिलहाल इनमें से अधिकांश गलियारे बाधित हैं। ऐसे में गजराज को अक्सर आबादी की ओर रुख करना पड़ रहा है और मानव-हाथी संघर्ष की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं।
पिछले कुछ दिनों में तराई केंद्रीय और पूर्वी प्रभाग के कई गांव हाथियों के उत्पात का सामना कर चुके हैं।
तराई केंद्रीय वन प्रभाग की बात करें तो यहां हल्द्वानी रेंज और गौला रेंज से सटी दर्जनों ग्राम पंचायतों के विभिन्न गांवों में बीते सप्ताह से देर रात हाथियों के झुंड ने धान और गन्ने की कई एकड़ फसलें रौंद डालीं। यहां के संसाधन विहीन ग्रामीण मशालों के सहारे रातभर जगराता करने को मजबूर हैं।
तराई केंद्रीय और तराई पूर्वी वन प्रभाग हाथियों की आवाजाही के लिहाज से बेहद अहम हैं। यहां खेत और गांव जंगल से सटे होने के कारण हाथियों का सामना सबसे ज्यादा किसानों से हो रहा है। नतीजा, धान और गन्ने की फसलें आए दिन हाथियों के पैरों तले रौंदी जा रही हैं।
वन महकमे के जिम्मेदारों द्वारा बताया जाता है कि“हाथी गलियारों को निर्बाध रखने की प्रभावी कार्ययोजना तैयार की जा रही है। इसके साथ ही जंगलों में भोजन और पानी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए वासस्थल विकास पर भी ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।” लेकिन वर्षों बीतने के वावजूद धरातल पर कार्यवाही शून्य है।