महात्मा सत्यबोधानंद जी ने बताया रक्षाबंधन का पौराणिक महत्व इस दिन से हुई रक्षा पर्व की शुरआत

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मानव उत्थान सेवा समिति के राष्ट्रीय संगठन सचिव सदगुरुदेव श्री सतपाल महाराज जी के परम शिष्य महात्मा सत्यबोधानंद जी ने पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व के प्रतीक रक्षाबंधन पर्व पर क्षेत्र वासियों को शुभकामनाएं दी है उन्होंने इसके पौराणिक महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि सर्वप्रथम इस पर्व की शुरुआत माता लक्ष्मी द्वारा राज बलि को राखी बांधने से हुई उन्होंने कहा कि राजा बलि जब सौ अश्वमेध का संकल्प लेते हैं और 99 यज्ञ जब उनके पूरे हो चुके होते हैं तो इंद्र का सिंहासन डोलने लगता है इंद्र अपनी रक्षा के लिए भगवान विष्णु के पास जाते हैं भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पर भूमि दान मांग लेते हैं दो पग में धरती और आकाश नापने के बाद राजा बलि भगवान विष्णु से उनका तीसरा पग उनके मस्तक पर रखने को कहते हैं राजा बलि की दान शीलता से प्रसन्न भगवान विष्णु वरदान मांगने को कहते हैं इस पर राजा बलि द्वारा प्रभु से दिन रात वही निवास करने का आग्रह किया गया बाद में नारद जी द्वारा बताए गए उपाय के तहत माता लक्ष्मी राजा बलि को राखी बांधकर बदले में अपने पति को वापस बैकुंठ धाम ले आती है उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी तभी से पर्व मनाया जाता है एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार देवता और राक्षसों के बीच युद्ध में दानव का पलड़ा भारी होने पर इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने रेशम का धागा अभिमंत्रित कर उसे इंद की कलाई पर बांध दिया और देवताओं को जीत मिली उस दिन भी श्रावण मास की पूर्णिमा की थी द्वापर युग में शिशुपाल वध के दौरान भगवान श्री कृष्ण की उंगली सुदर्शन चक्र से कट जाती है इस पर द्रौपदी द्वारा अपनी साड़ी का पल्लू चीरकर भगवान कृष्ण की उंगली पर बांधा जाता है उस दिन से भी इस परंपरा की शुरुआत हुई महात्मा सत्यबोधानंद जी ने कहा कि हमारा प्रत्येक पर्व किसी ने किसी पौराणिक सामाजिक ऐतिहासिक घटना से जुड़ा होता है जो हमें अपने गौरवशाली अतीत की ओर ले जाता है और अतीत से सीख लेकर संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने का भी संदेश देता है

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