महात्मा सत्यबोधानंद जी का नवरात्र पर संदेश: सेवा सुमिरन सत्संग को बनाए जीवन का अभिन्न अंग

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मानव उत्थान सेवा समिति के राष्ट्रीय संगठन सचिव एवं सदगुरुदेव श्री सतपाल महाराज जी के परम शिष्य महात्मा सत्यबोधानंद जी ने राज्यवासियों के नाम भेजे अपने शुभकामना संदेश में सभी को नवरात्रि एवं नव संवत्सर की हार्दिक बधाई प्रेषित की है तथा धर्म एवं अध्यात्म को जीवन में अपनाकर सामाजिक सौहार्द एवं समरसता कायम करने की भी अपील की है ! महात्मा सत्यबोधानंद जी ने कहा कि वर्ष भर में मुख्य रूप से चार नवरात्र आते हैं जिसमें दो गुप्त नवरात्रि कहे जाते हैं और दो नवरात्रि प्रकट रूप से माने जाते हैं जिसमें चैत्र मास की बासंतिक नवरात्रि एवं आश्विन मास की शारदीय नवरात्र प्रमुख है उन्होंने कहा कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से जगत जननी जगदंबा के 9 स्वरूपों की पूजा अर्चना का विधान है और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही नव संवत्सर की शुरुआत हुई है इसी दिन राजा विक्रमादित्य ने अपने साम्राज्य की स्थापना की थी यह वही दिन है जब सृष्टि की रचना भी प्रारंभ की गई महात्मा सत्यबोधानंद जी ने कहा कि जगत जननी जगदंबा ही संपूर्ण चराचर जगत की अधिष्ठात्री हैं जिन्होंने त्रिदेवों को सृजन पालन और संघार की शक्ति प्रदान की है नवरात्रि का पर्व शक्ति आराधना का पर्व माना जाता है अर्थात आध्यात्मिक ऊर्जा का संचय कर अपने अंतःकरण को शुद्ध करते हुए मन वचन एवं कर्म से सदैव परमार्थ का चिंतन करना शक्ति आराधना का प्रमुख अंग है उन्होंने कहा कि सेवा सुमिरन और सत्संग वास्तव में ज्ञान भक्ति और वैराग्य की त्रिवेणी हैं जो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अनिवार्य रूप से होना चाहिए क्योंकि यह मानव तन ईश्वर की असीम कृपा के बाद प्राप्त हुआ है ऐसे में हम सब का दायित्व होना चाहिए कि हम सदगुरुदेव श्री महाराज जी के बताए गए मार्ग पर चलते हुए उनके द्वारा मानवता के दिए गए दिव्य संदेश का अनुसरण करते हुए जीवन पथ पर आगे बढ़े यही नवरात्र का मूल उद्देश्य भी है और इसी में जीवन की सार्थकता है

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