उत्तराखंड का प्रमुख शिखर जिसे राजा भरत की तपस्थली कहा जाता है

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आखिर क्यों प्रसिद्ध है भटकोट पर्वत
मां दूनागिरी के प्राणों से अनुप्राणित धनुवंतगिरी भटकोटि जी महाराज जो पिछले 14 वर्षों से मां दुनागिरी मंदिर में भक्ति में लीन है उससे पूर्व 13 वर्षों तक भटकोट पर्वत में एकांतवास में साधनारत रहे और उससे पूर्व लगभग इतने ही वर्षों तक पांडव खोली में भी उन्होंने साधना की वर्तमान में माता दूनागिरी के दरबार में साधनारत भटकोटि महाराज जी पास में दिखाई देने वाले भटकोट शिखर की महिमा का वर्णन करते हुए बताते हैं कि द्रोणांचल पर्वत पर स्थित भटकोट शिखर राजा भरत की तपस्थली रही है इसके पूर्व की ओर पिनाकेश्वर की दुर्गम चट्टानी पहाड़ी है जहां भगवान शिव का संपूर्ण परिवार निवास करता है इसके पश्चिम की और पांडव खोली पवित्र पांडवों की स्थली है यहां अज्ञातवास में पांडवों ने निवास किया इसी स्थान पर भीम की खातड़ी एवं द्रोपदी के केश विशेष दर्शनीय है भटकोटी महाराज जी बताते हैं कि वास्तव में भटकोट पर्वत एक ऐसा दुर्लभ पहाड़ है जिसमें समस्त प्रकार की चट्टानी वनस्पति पाई जाती है वे बताते हैं कि कहीं-कहीं पर प्रकृति की अत्यंत दुर्लभ नस्ल के कस्तूरी मृग पाए अथवा देखे जाते हैं अनेक पहाड़ियों से गिरी यह पहाड़ी अपने अंदर अनंत रहस्यों को समेटे हुए हैं वह बताते हैं कि यह भटकोट शिखर महा अवतार बाबा हैड़ाखान बाबा एवं नांतिन बाबा की तपस्थली भी रहा है इस पर्वत श्रृंखला में अश्वत्थामा जो अमर है उनके भी दर्शन हो जाते हैं तथा इस शिखर पर महायोगी श्री दत्तात्रेय महाराज के दर्शन भी सुलभ है इस पर्वत श्रृंखला में जल की अत्यंत कमी होने के कारण आकाशीय जल की व्यवस्था है कहीं-कहीं जल के स्रोत है जो जंगलों की आग से प्रायः समाप्त होते जा रहे हैं अत्यंत सूक्ष्म कंदराओं में आध्यात्मिक तरंगों के मध्य जो अति शक्तिशाली है महायोगी महाराज का दर्शन अति दुर्लभ है पर मनुष्य को अभ्यास और वैराग्य से दुर्लभ भी सुलभ हो जाता है हर मनुष्य के अंतःकरण में जो ज्योति स्वरूप परमात्मा विराजता है हम सभी उसी के अंश मात्र हैं पुरातन वेदों में जो मंत्र थे वह प्रतिपल इस प्रकृति में रहते हैं सूक्ष्म तरंगों के मध्य इन मंत्रों के साथ तारतम्य करना वह स्थिति है जिसे प्रकृतिके अनंत गहराई के साथ तरंगित होता है मां दूनागिरी धाम से अथवा मंगली खान से भटकोट शिखर के दर्शन किए जा सकते हैं जनपद अल्मोड़ा के द्वाराहाट क्षेत्र से 12 किलोमीटर की दूरी तय कर मंगली खान पहुंचा जा सकता है जहां से करीब 500 सीढ़ियां चढ़कर वैष्णवी रूप में पूजित मां दूनागिरी के दर्शन किए जा सकते हैं पास में ही संत कुटीर में भटकोटी महाराज जी विराजमान है
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमो नमः

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