नवरात्र पर्व: इस बार हाथी पर सवार होकर आएगी मां जगदंबे, काली भक्त अखिलेश चमोला का आलेख

नवरात्रि पर्व पर विशेष —-मा भगवती के नामोच्चारण मात्र से मिलती है भव सागर से मुक्ति ———-लेखक-अखिलेश चन्द्र चमोला।
उत्तराखन्ड को देवभूमि व ऋषि मुनियों की तपस्थली के नाम से जाना जाता है। यहां पर ऋषि मुनियों ने तपस्या करके परम तत्व के साथ आत्म साक्षात्कार किया है । भगवान शिव के अनन्य भक्त होने पर भी आदि गुरु शंकराचार्य ने श्रीनगर स्थित श्री यन्त्र टापू में मां भगवती के महत्व को स्वीकार कर मुक्त कंठ से यह उजागर किया कि सैकड़ों अपराध करके भी जो तुम्हारी शरण में जा कर मां जगदम्बा कहकर पुकारता है,उसे वह गति प्राप्त हो जाती है,जो देवताओं के लिए भी सुलभ नहीं। मां अत्यधिक करुणामयी हैं।जो कि नामोच्चारण मात्र से ही भक्तों के मनोरथ पूर्ण कर देती है।22सितम्बर से मां भगवती के शारदीय नवरात्रे हैं। नवरात्रि का अर्थ है नौ दिन और नौ रात्रि तक एकाग्र चित्त होकर मां की आराधना में लीन होकर सम्पूर्ण भाव से जप तप करना।पूरे वर्ष के चैत्र आषाढ़, आश्विन एवं माघ मास में मनाया जाने वाला पुनीत त्योहार में मां दुर्गा के नौ रुपों की पूजा बड़ी शुभ मानी जाती है।इन चार महीनों में चैत्र माह बसन्तीय नवरात्रे एवं आश्विन माह में शारदीय नवरात्रे प्रमुख व विशिष्ट माने जाते हैं। आषाढ़ एवं माघ मास के नवरात्रे गुप्त नवरात्रि केनाम से जाने जाते हैं। दोनों ही नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा दुर्गा सप्तशती के पाठो से की जाती है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि का पुनीत त्योहार 22 सितम्बर से 1अक्टूबर तक है। जिसमें शुक्ल और ब्रह्म योग के साथ क्ई मंगल कारी योग बनने के साथ मां भगवती का सुआगमन हाथी की सवारी के साथ होगा।जो कि अपने आप में धन धान्य एवं समृद्धि के भाव को निरूपित करता है। तृतीय तिथि में भी वृद्धि हो रही है।जो कि विशिष्टता का द्योतक है।22 सितंबर से होने वाले नवरात्रों में घट स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6बजकर 9मिनटसे 8बजकर 6मिनट तक है।
शुद्ध रेत में जौ बो कर अपनी सामर्थ्य अनुसार संकल्प लेकर ज्योति जलायें। मां भगवती की पूजा में दुर्वा,तुलसी,और तमाल के फूलों का प्रयोग बिल्कुल न करें। मां के फलों में अनार ,केला,आम, जामुन आदि अर्पित करें।
नवरात्रि में कुछ बातों पर विशेष ध्यान दें, जैसे -मास मदिरा का प्रयोग न करें, ज़मीन पर ही शयन करें,मन में वासनात्मक विचार न लायें, किसी से भी अनावश्यक वार्तालाप न करें, स्वयं को मां भगवती में लीन करें, छोटी-छोटी कन्याओं को प्रत्येक दिन भक्ति भाव से भोजन कराकर उनमें मां भगवती के दर्शन करें। मां शक्ति स्वरूपा मां भगवती के नाम उच्चारण से ही व्यक्ति भव सागर से मुक्त हो जाता है। दुर्गा सप्तशती नामक पुस्तक का प्रतिदिन नतमस्तक होकर पूजा करें। ऋग्वेद में कहा गया है –मा भगवती ही महत्वपूर्ण शक्ति है। उन्हीं से सम्पूर्ण विश्व का संचालन होता है। उनके अतिरिक्त कोई दूसरी शक्ति नहीं है।
नौ रुपों में प्रथम रुप शैलपुत्री का है,इसका मूल मंत्र है -ऊ शैलपुत्रयै नमः,जो कि असीम शक्ति का प्रतीक है। इस नाम का स्मरण कर साधक अपने आप को मूलाधार चक्र में एकनिष्ठ करता है। यहीं से कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया का मार्ग भी खुल जाता है।

दूसरे स्वरुप की पूजा ऊं ब्रह्म चारिण्ये नमः से की जाती है।इस रुप से इन्द्रिय निग्रह और तपस्या के स्वरूप का बोध होता है। तीसरा स्वरुप चन्द्र घन्टा में भक्तों का मन मणिपूर चक्र में प्रविष्ट हो जाता है। जिससे सांसारिक दुःखों से छुटकारा मिल जाता है। चौथा स्वरूप कुष्मांडा का है जो कि अपने भक्तों को अनेक प्रकार की विघ्न ब्याधि व बीमारियों से मुक्त कर देती है। इसमें साधक का मन अनाहत चक्र में पहुंच जाता है। पांचवें स्वरूप स्कन्द माता को कार्तिकेय की माता के रूप में जाना जाता है।यह रुप अपने भक्तों को अद्भुत आभा मंडल प्रदान करता है।साधक का मन विशुद्ध चक्र में रम जाता है।छटा रुप कात्यायनी का है,जो सोने से भी अधिक चमकीला है।इस रूप की पूजा करने से भक्त आज्ञा चक्र में एकाग्र हो जाता है। चारों प्रकार के पुरुषार्थों की प्राप्ति हो जाती है। सातवां स्वरूप मां का कालरात्रि का है। इस रूप की पूजा करने से भक्त मृत्यु से भी नहीं घबराता है।मन मानस चक्र में पहुंच जाता है। मां के आठवें स्वरुप महागौरी का ध्यान करने से बुरे विचारों और अवगुणों का शमन हो जाता है। मां दुर्गा के नवें स्वरुप सिद्धि दात्रि की पूजा अर्चना कर ने से भक्त को सभी प्रकार की लौकिक आलौकिक सिद्धियां सुलभता से प्राप्त हो जाती हैं।
नवरात्रि के पुनीत सुअवसर पर उपवास लेने से शरीर को भी आराम मिल जाता है।अच्छी सोच व सकारात्मक विचारों का प्रकटीकरण हौ जाता है। मां अपने भक्त की हर इच्छा पूर्ण कर देती है।
मां दुर्गा की पूजा में सबसे जरूरी है हृदय गत शुद्ध भावना व समर्पण, सच्चे हृदय से की गई पूजा में मां भक्तों को तत्काल दर्शन दे दैती है।जब जब देवताओं पर भी घोर संकट आया तो उन्होंने भी मां नव दुर्गा की आराधना कर अपने घोर संकटों से मुक्ति पाई है।
/लेखक –स्वर्ण पदक, जिलाधिकारी रजत प्लेट, महामहिम राज्यपाल पुरस्कार से अलंकृत होने के साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान से सम्मानित है/
