माता राज राजेश्वरी जी के अनमोल विचार

“ सत्संग के बिना वैराग्य नहीं होता”
महापुरुष ही इस संसार में अज्ञान-निद्रा से जगाने के लिए आते हैं । उन की यही धारणा होती है कि मनुष्य उठे और अपने लक्ष्य को प्राप्त करे । संसारी व्यक्ति तो केवल अपने स्वार्थ के लिए ही जीता है, लेकिन महापुरुष में स्वभाविक ही दया होती है, जो उसके परोपकार के लिए प्रेरित करती है । वे ही सबको आत्म-तत्व का ज्ञान देना चाहते हैं जो सबके अंदर समान रूप से विद्यमान है । वे मानव मात्र से प्रेम करते हैं, ऊँच-नीच और जाति-पाँति को नहीं देखते । देखिए संत-महात्मा ने अपने घरों को त्यागकर प्रचार कार्य में लगे हुए हैं, वे सबके अंदर ज्ञान और सेवा के संस्कार भरते हैं । जब आप सेवा करोगे तब ही महान बनोगे । पूर्व जन्म की कमाई से ही संतों से मिल पाते हैं और उनके कृपा से इस कलिकाल में भी आध्यात्मिक वातावरण को प्राप्त कर सकते हैं । सब में सार वस्तु तो आत्मा है, जब आत्मा निकल गयी तो फिर मानव मिट्टी है । यह आत्मा-शक्ति सब में एक जैसी है और इसी शक्ति के अंदर भगवान का नाम रमा रहता है । तत्वदर्शी इसी आत्मा-शक्ति और नाम का बोध कराते हैं, परमात्मा का नाम बीज रूप में हमारे हृदय में है । हम लोग थोड़े दिन के लिए दूसरे स्थान जाते हैं तो कितनी वस्तुयें साथ लेकर जाते हैं, लेकिन हम यह कभी नहीं सोचते कि जब हम शरीर छोड़कर जायेंगे तो हमारे साथ क्या जायेगा? संसार की वस्तुएँ तो सभी यहीं रह जाएगी । अगर परमात्मा की भक्ति नहीं की तो यम के दरवाजे पर पकड़ा जायेंगे इसलिए जो अपने आप को और अपने मनको हरि के नाम में नहीं रंगाता और नाम की कमाई नहीं करता वह अवश्य ही यम के दरवाज़े पर पकड़ा जाएगा । इसलिए आलस्य छोड़कर प्रभु का भजन करना चाहिए । सबसे पहले संत के संगत और उनके द्वारा सत्संग का श्रवण करके ही हृदय में विवेक और वैराग्य को जागृत कर सकते हैं, तब भगवान के नाम का सुमिरण हो सकेगा । आत्मज्ञान तो केवल श्रद्धावान को ही मिलता है । इसलिए श्रद्धाभाव से सत्संग को श्रवण करो तब ही आत्मज्ञान प्राप्त कर सकते हो ।
