विश्वकर्मा जयंती पर पढ़िए आचार्य प्रकाश बहुगुणा का ज्ञान वर्धक आलेख

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विश्वकर्मा की कथाएं मुख्य रूप से हिन्दू धर्म ग्रंथों, जैसे ऋग्वेद, महाभारत और पुराणों में मिलती हैं, जहाँ उन्हें देवताओं का दिव्य वास्तुकार और निर्माण व सृजन का देवता माना जाता है। उनकी कथाओं में स्वर्ग लोक, सोने की लंका, द्वारका और हस्तिनापुर जैसे नगरों के निर्माण का उल्लेख है। उन्हें सभी शिल्पकारों का संरक्षक भी माना जाता है और उन्हें सुदर्शन चक्र, त्रिशूल और कालदण्ड जैसे अस्त्र-शस्त्र बनाने का श्रेय दिया जाता है। 
प्रमुख कथाएँ और मान्यताएँ:
दिव्य वास्तुकार:
विश्वकर्मा को ब्रह्मांड का दिव्य वास्तुकार, यंत्रों का अधिष्ठाता और स्थापत्य वेद का रचयिता माना जाता है। 
निर्माण कार्य:
उन्होंने इंद्रलोक, द्वारका, लंका, हस्तिनापुर और पाण्डवपुरी जैसे नगरों का निर्माण किया था। 
शस्त्रों के निर्माता:
उन्होंने भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, शिव का त्रिशूल और यमराज का कालदण्ड जैसे अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण किया था। 
पुत्र और परिवार:
उनके पांच महान पुत्र थे – मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और देवज्ञ, जो विभिन्न शिल्प विधाओं में पारंगत थे। संज्ञा, उनकी पुत्री, का विवाह सूर्य से हुआ था, जिससे अश्विनीकुमारों का जन्म हुआ। 
लोकप्रिय कथाएँ:
एक लोकप्रिय कथा के अनुसार, उन्होंने चार युगों में विभिन्न नगरों का निर्माण किया, जिसमें सत्ययुग में स्वर्ग लोक, त्रेता युग में लंका, द्वापर में द्वारका और कलियुग के आरम्भ से पूर्व हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ शामिल हैं। 
शिल्पकार समुदाय:
विश्वकर्मा समुदाय की उत्पत्ति की कथाएँ भी प्रचलित हैं, जिनमें बताया गया है कि कैसे उनके पूर्वजों ने देवताओं की सेवा की और बाद में वे विभिन्न क्षेत्रों में शिल्पकारों के रूप में बिखर गए।