शिक्षक दिवस पर पढ़िए डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचय, शिक्षाविद अखिलेश चमोला की कलम से

डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अतुलनीय व्यक्तित्व से मिलती है आदर्श शिक्षा तथा मानवता वादी चिन्तन की सोच
लेखक ——अखिलेश चन्द्र चमोला,कला निष्णात -स्वर्ण पदक प्राप्त, श्रीनगर गढ़वाल।
हमारे भारत वर्ष को ऋषि मुनियों की तपस्थली के साथ साथ रत्न गर्भा के नाम से भी जाना जाता है। समय-समय पर इसके गर्भ से अतुलनीय रत्न अवतरित हुए। जिन्होंने अपनी प्रतिभा से पूरे विश्व में डंका बजाकर अतुलनीय कीर्ति मान स्थापित किया, जहां भी इन्होंने कदम रखे वहीं अपने व्यक्तित्व की अमिट छाप छोड़ी।इस तरह के विशिष्ट तथा प्रभाव कारी व्यक्तित्व में सर्वपल्ली राधाकृष्णन का नाम बडे़ गौरब के साथ लिया जाता है।
इनका जन्म 5सितम्बर को 1888को तमिलनाडु के तिरुतानी नामक गांव में हुआ था।इनकी माता का नाम श्रीमती सीतम्मा तथा पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी था। शुरुआती शिक्षा गांव के ही स्कूल में तथा कला स्नातक व कला निष्णात दर्शन शास्त्र से मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से किया।17वर्ष की अवस्था में शिव कमु अम्मा नामक लड़की से शादी हुई।1909मे मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से शिक्षक जीवन की शुरुआत की।19018, में मैसूर विश्वविद्यालय में मैसूर विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र जैसे गूढ़ विषय के प्राध्यापक नियुक्त हुए।1921मे कोलकाता विश्वविद्यालय चले गए और दर्शन शास्त्र का शिक्षण करने लगे।1928 में आक्सफोर्ड विश्व विद्यालय के साथ शैक्षिक सम्बन्धों की शुरुआत की।931मे आन्ध्र विश्वविद्यालय के कुलपति बने।1936मे कांशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति के पद के रूप में कार्य भार ग्रहण किया।1954मे दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति बने।भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित हुए।1956 में पत्नी शिव कम्मु अम्मा का निधन हुआ।17अप्रैल 1975 में पन्च तत्व में विलीन हुए।
एक बार जब उनके मित्र और छात्र उनका जन्म दिवस बड़े भव्य समारोह के साथ मनाना चाहते थे,तो राधाकृष्णन ने उनको सुझाव दिया कि आप लोगों का मेरे प्रति जो सम्मान है उसका मैं हृदय से सम्मान करता हूं , लेकिन यदि आप मेरे इस जन्म दिन के अवसर पर शिक्षकों का सम्मान करते तो मुझे सबसे ज्यादा प्रसन्नता होती।उस दिन से यह दिन शिक्षक दिवस के रूप में निरूपित हो गया।

राधाकृष्णन ने अपने जीवन काल में बहुत सारी पुस्तकें लिखी,जो विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित हुई। जिनमें प्रमुख पुस्तकें द एथिक्स आफ वेदान्त,द फिलासफी आफ रवीन्द्र नाथ टैगोर,माई सर्व फार ट्रुथ,द रेन आप कन्टम्परेरी फिलासफी, रिलीजन एन्ड सोसायटी, इन्डियन फिलासफी,द एसेन्सियल आप सायकालजी आदि है।
हमारा देश ब्रिटिश शासकों की गुलामी सह रहा था। जिससे आजाद करने के लिए तरह-तरह के आन्दोलन हुए,इसी क्रम में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र छात्राओं ने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया । जिसके परिणामस्वरूप तत्कालीन गवर्नर सर मारिस हेलेट ने विश्व विद्यालय को आर्थिक सहायता देना बन्द कर दिया।ऐसी स्थिति में सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपनी सम्पूर्ण भविष्य निधि से धन की कमी को आड़े नहीं आने दिया।इस सन्दर्भ में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा —-राधाकृष्णन ने क्ई प्रकार से अपने देश की सेवा की। लेकिन सर्वोपरि वे एक महान शिक्षक रहे, जिससे हम सबने बहुत कुछ सीखा और सीखते रहेंगे।
1949 में सर्वपल्ली राधाकृष्णन को सोवियत संघ में भारत के प्रथम राजदूत के रूप में चुना गया।उस समय जोसेफ स्तालिन वहां के राष्ट्रपति थे।इनके चयन पर सबको यह लगा कि भारतीय संस्कृति में पला व्यक्ति भौतिकतावादी चकाचौंध वालीं धरती के साथ आत्म सात कैसे कर पायेगा।समय के साथ राधाकृष्णन ने अपनी प्रतिभा की छाप छोड़ दी। विद्वानों ने यहां तक कहा –आज मास्कों में जो भारत की प्रतिष्ठा है,वह राधाकृष्णन की देन है।
1955 मे डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के उपराष्ट्रपति बने। वहां भी अपनी अमिट छाप छोड़ी।भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा- राधाकृष्णन जिस तरह से राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन करते थे, उससे यह लगता था कि यह सभा की बैठक नहीं अपितु पारिवारिक मिलन समारोह है।
1962 में भारतीय गणतंत्र के दूसरे राष्ट्रपति बने । विदेशों में इस बात का उदघोष किया —लोकतन्त्र के प्रहरी के रूप में अपने कर्तव्य का पालन करें।इस बात को अच्छी तरह से समझ लें कि लोकतंत्र का अर्थ मतभेदों को मिटा डालना नहीं अपितु मत भेदो के बीच समन्वय का रास्ता निकालना है। इस प्रकार राष्ट्रपति बनने पर पूरे देश को मानवता वादी का पाठ सिखाया।
राधाकृष्णन जब अध्यापन कार्य करते थे तो छात्र उनके व्याख्यान में तल्लीन हो जाया करते थे। मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज के एक छात्र ने उनके विषय में इस प्रकार से कहा कि -जितनी देर तक वे पढ़ाते थे,उतने समय तक उनका प्रस्तुतीकरण उत्कृष्ट रहता था,वे जो कुछ पढ़ाते थे ,सभी के लिए सुगम था।उनकी कक्षाओं में सबसे ज्यादा अनुशासन रहता था।
राधाकृष्णन का अपने जीवन का मुख्य सूत्र यह था कि –तुम जब सफ़लता की ऊंचाईयों तक पहुंच जाओ तो उस समय अपने कदमों को यथार्थ धरातल से कभी डिगने मत देना। जीवन पर्यन्त राधाकृष्णन प्रसिद्ध दार्शनिक ह्यूम के इस विचार -दार्शनिक बनो,अपार कीर्ति अर्जित करने के साथ एक मानव बने रहो। से आत्मसात करते रहे। नोबेल पुरस्कार विजेता सी वी रमन ने राधाकृष्णन के विषय में लिखा —-राधाकृष्णन के दुबले पतले शरीर में एक महान आत्मा का निवास था।इस तरह की श्रेष्ठ आत्मा जिसकी हम सभी श्रद्धा , प्रशंसा, यहां तक कि पूजा करना भी सीख गये।
