ऋषि चिंतन : वेदमूर्ति पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का आलेख स्वस्थ रहने का सरल उपाय

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🌴०१ जुलाई २०२५ मंगलवार 🌴
🍂आषाढ़ शुक्लपक्ष षष्ठी २०८२ 🍂
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‼️ऋषि चिंतन ‼️
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❗➖ प्रातः जागरण➖❗
‼️स्वस्थ रहने का सरल उपाय‼️
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👉 “प्रातः जागरण” को संसार के सभी लोगों ने स्वास्थ्य के लिए अतिशय हितकर माना है। अंग्रेजी कहावत है- Early to bed early to rise makes a man healthy, wealthy and wise.” “जल्दी सोना और जल्दी उठना मनुष्य को स्वस्थ, धनवान और बुद्धिमान बनाता है ।’
शास्त्रकार का कथन है-
“ब्राह्मे मुहूर्ते उत्तिष्ठेत्स्वस्थेऽरक्षार्थ मायुषः।”
अर्थात् “प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में जाग उठने से तंदरुस्ती और उम्र बढ़ती है।

वेद का प्रवचन है-
यदद्य सूर उदितोऽनागा मित्रो अर्यमा। सुधाति सविता भगः। साम १३।५१
अर्थात – “प्रातःकालीन प्राण वायु सूर्योदय के पूर्व लेने तक निर्दोष रहती है, अतः प्रातःकाल जल्दी उठना चाहिए, इससे स्वास्थ्य और आरोग्य स्थिर रहता है तथा धन की प्राप्ति होती है।”
संत विनोबा का कहना है- “रात में नींद लेने के बाद शरीर की वृद्धि हो जाती है। उसे कायम रखने के लिए सुबह जल्दी उठ जाना चाहिए। उस समय दिमाग ताजा रहता है, कोई आवाज नहीं होती, सृष्टि की अनुकूलता होती है, इसलिए उस वक्त बुद्धि ज्ञान-ग्रहण के लिए जाग्रत रहती है।’
स्वामी विवेकानंद का कथन है- “सूर्योदय से पूर्व उठने से शरीर स्वस्थ रहता है तथा बुद्धि का विकास होता है।’
सिक्खों के धर्म ग्रंथों में आया है- “यदि आप चाहते हैं कि आपकी आयु अधिक हो, बुढ़ापा आप से दूर रहे, आपका शरीर पूर्ण स्वस्थ बना रहे तो आप प्रातः काल जल्दी उठा कीजिए।
👉 आरोग्य रक्षा के नियमों में प्रातःकाल जागने में विश्व एकमत है। यह जानी हुई बात है कि दिन भर के कार्यों दौड़ धूप आदि से जो धरती में हलचल उत्पन्न होती है, उससे प्राकृतिक वातावरण अशांत हो जाता है। धूल के कण, कार्बन तत्व और अन्य विषैले पदार्थ हवा के साथ आकाश में भर जाते हैं, इनका स्वास्थ्य पर दूषित प्रभाव पड़ता है। उस वायु में स्थूल तत्व अधिक होते हैं और प्राण की मात्रा कम होती है। जिससे मनुष्यों के शरीर में भी स्थूलता तो बढ़ती है और प्राण संचय भी अवरुद्ध होता है। दिन भर का कोलाहल रात में शांत होने लगता है और तीसरे प्रहर अर्थात प्रातःकाल तक वह सारा ही गर्द गुबार जमीन में बैठ जाता, जिससे प्राण वायु निर्दोष हो जाती है। इस वातावरण में स्वाभाविक सांसे लेने पर प्राण की इतनी मात्रा शरीर में एकत्रित हो जाती है कि जिससे सारे दिन तबियत प्रसन्न रहती है और ताजगी बनी रहती है। इससे प्राण का संचित कोष रीतता नहीं है और आरोग्य स्थिर बना रहता है। इस प्राण में इतनी जीवटता होती है जो दिन भर के विषैले पदार्थों से लड़कर उसे समाप्त कर देने में सफल हो जाती है और शरीर पर कोई दूषित आघात पड़ने नहीं पाता। इस प्राण-विद्युत के संचय के लिए प्रातःकाल जल्दी जाग उठना सब प्रकार मंगलकारी होता है।
👉 इन लाभों को जानते हुए भी लोगों को शिकायत रहती है कि प्रातःकाल उनकी नींद नहीं टूटती, यदि प्रयत्न करें और जागकर बैठ जाएँ तो आलस्य दूर नहीं होता। शरीर को जितने विश्राम की आवश्यकता होती है, वह पूरी न हो तो आलस्य आना, जम्हाइयाँ आना स्वाभाविक है यह शिकायत उन्हीं को हो सकती है, जिनकी नींद पूरी न होती हो। ऐसा तभी संभव है जब वह देर से सोता हो। इसलिए प्रातः काल जल्दी उठने के लिए यह आवश्यक है कि शाम को यथा संभव जल्दी ही आवश्यक कार्यों से निपट कर सो जाए जाए। सोकर जाग जाने का अर्थ केवल चारपाई पर बैठ जाना नहीं होता, वरन् उस समय का उपयोग भी होना चाहिए ।
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सात्विक जीवनचर्या और दीर्घायुष्य पृष्ठ ०८
🍁पं श्रीराम शर्मा आचार्य🍁
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