ऋषि चिंतन: युग ऋषि वेदमूर्ति पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का सत्संग

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🌴१२ सितंबर २०२५ शुक्रवार 🌴
🥀आश्विन कृष्णपक्ष पंचमी २०८२🥀
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‼️ऋषि चिंतन ‼️
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।। जीवन में संतुलन बनाइए।।
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👉 जीवन एक “झूला” है जिसमें आगे भी और पीछे भी झोंके आते । झूलने वाला पीछे जाते हुए भी प्रसन्न होता है और आगे आते हुए भी। यह अज्ञानग्रस्त, माया-मोहित, जीवन-विद्या से अपरिचित लोग, बात-बात में अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं। कभी हर्ष में “मदहोश” हो बैठते हैं तो कभी शोक में “पागल” बन जाते हैं। अनियंत्रित कल्पनाओं की मृगमरीचिका में उनका मन अत्यंत दीन, अभावग्रस्त, दरिद्री की तरह व्याकुल रहता है। कोई उनकी रुचि के विरुद्ध बात कर दे तो क्रोध का पारावार नहीं रहता। इंद्रियाँ उन्हें हर समय तरसाती रहती हैं, भस्मक रोग वाले की जठर-ज्वाला के समान भोगों की लिप्सा बुझ नहीं पाती। नशे में चूर शराबी की तरह “और लाओ, और लाओ”‘, “और चाहिए, और चाहिए”‘ की तरह रट लगाए रहते हैं। ऐसे लोगों के लिए कभी भी सुख-शांति के एक कण का दर्शन होना भी दुर्लभ है। भले ही उनके पास लाख करोड़ की संपदा तथा वैभव के साधन भरे-पूरे हों, पर वे किसी न किसी अभाव के कारण दीन, दरिद्री ही बने रहेंगे। उन्हें अपना सौभाग्य ही हर घड़ी परिलक्षित होता रहेगा। अपनी मनोवांछाएँ पूरी होने पर, जो सुखी होने की आशा करता है, वह मूर्ख न तो सुख को, न सुख के स्वरूप को, न सुख के उद्गम को जानता है और न वह उसे प्राप्त ही कर सकता है।
👉 गायत्री के ‘स्वः’ शब्द में मानव प्राणी को शिक्षा दी गई है कि मन को अपने में, अपने अंदर स्थिर रखो। अपने भीतर दृढ़ रहो। घटनाओं और परिस्थितियों को जल-तरंगें समझो, उनमें क्रीड़ा-कल्लोल का आनंद लो। “अनुकूल” और “प्रतिकूल” दोनों ही स्थितियों का रसास्वादन करो, किंतु उनके कारण अपने को उद्विग्न, अस्थिर, असंतुलित मत होने दो। जैसे सरदी, गरमी की परस्पर विरोधी ऋतुओं को हम प्रसन्नतापूर्वक सहन करते हैं, उन ऋतुओं के दुष्प्रभाव से बचने के लिए वस्त्र, पंखा, अँगीठी, शरबत, चाय आदि की प्रतिरोधात्मक व्यवस्था कर लेते हैं, वैसे ही सुख-दुःख के अवसरों पर भी उनकी उत्तेजना पर शासन करने योग्य विवेक तथा कार्यक्रम की हमें व्यवस्था कर लेनी चाहिए। कमल सदा पानी में रहता है, पर उसके पत्ते जल से ऊपर ही रहते हैं, उसमें डूबते नहीं। इसी प्रकार साक्षी, द्रष्टा भाव में निर्लिप्त, अनासक्त एवं कर्मयोगी की विचारधारा अपनाकर हर परिस्थिति को, में हर चढ़ाव-उतार को देखें और उसमें मिर्च तथा खटाई के कडुए-मीठे रसों का हँसते-हँसते रसास्वादन करें।
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“गायत्री के चौदह रत्न” पृष्ठ २७
🍁।।पं श्रीराम शर्मा आचार्य।।🍁
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