इस दिन से शुरू होंगे श्राद्ध पक्ष, महान शिक्षाविद ज्योतिषाचार्य अखिलेश चमोला से जानिए संपूर्ण जानकारी

श्राद्ध पक्ष की प्रासंगिकता ——
लेखक ——अखिलेश चन्द्र चमोला, महामहिम राज्यपाल पुरस्कार से सम्मानित व स्वर्ण पदक से अलंकृत।श्रीनगर गढ़वाल।
हमारी भारतीय संस्कृति समस्त संस्कृतियों में विशिष्ट स्थान रखती है। भारतीय संस्कृति की अदभुत व अनूठी विशेषता यह है कि यहां आत्मा को अजर अमर माना गया है। गीता में इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रो को त्याग कर नवीन वस्त्रो को धारण करता है। ठीक उसी प्रकार आत्मा भी पंच तत्व से बने शरीर में रूपांतरित हो जाती है। आत्मा अजर अमर रहती है। यदि आत्मा अतृप्त रहती है तो उसे तृप्त करना बहुत जरूरी है। इसी कारण 12 महीना में आश्विन मास पितरों की तृप्ति के लिए बड़ा शुभ कारी माना जाता है।
जब सूर्य नारायण कन्या राशि में विचरण करते हैं ,तब पितृलोक पृथ्वी के सबसे समीप आ जाता है। श्राद्ध आश्विन कृष्ण पक्ष में विशेष रूप से होने के कारण यह भी है कि सूर्य भगवान अपनी मित्र राशि कन्या जिसका स्वामी बुध है ।बुद्ध के स्वामी नारायण का मिलन इस पक्ष में होता है। नारायण मोक्ष के भी कारक माने जाते हैं ।इसलिए आश्विन मास कृष्ण पक्ष के लिए महत्वपूर्ण है। उपनिषद में कहा गया है- जीव से रहित हुआ यह शरीर मरता है। आत्मा नहीं ,आत्मा की तृप्ति के लिए श्राद्ध करना अनिवार्य है,नहीं तो आत्मा भटकती रहती है ,और परिवार पितृदोष से ग्रसित हो जाता है। पितृदोष दोष होने से पूरे परिवार में अशांति की स्थिति आ जाती है । श्राद्ध से संबंधित क्रियाएं दक्षिण दिशा की ओर करना शुभ माना जाता है ।जहां तक संभव हो सके इस पर्व पर मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग करना चाहिए। श्राद्ध कर्ता को श्राद्ध के दिन बड़े संयम से रहना चाहिए। जहां तक हो सके इस पर्व पर किसी भी तरह के सुगंधित द्रव्यों का लेपन नहीं करना चाहिए।
इस वर्ष यह पुनीत पर्व 7सितम्बर से शुरू होकर 21 सितंबर तक रहेगा। श्राद्धों की तिथियां इस प्रकार से है -रविवार-7सितम्बर पूर्णिमा श्राद्ध, सोमवार 8सितम्बर प्रतिपदा श्राद्ध, मंगल वार9सितम्बर-द्वितीय श्राद्ध, बुधवार 10सितम्बर को तृतीय व चतुर्थी श्राद्ध, गुरूवार 11सितम्बर-पन्चमी श्राद्ध, शुक्रवार 12सितम्बर -षठी श्राद्ध, शनिवार 13सितम्बर -सप्तमी श्राद्ध, रविवार 14सितम्बर अष्टमी श्राद्ध, सोमवार 15सितम्बर -नवमी श्राद्ध, मंगल वार16सितम्बर -दशमी श्राद्ध, बुधवार 17सितम्बर-एकादशी श्राद्ध, गुरु वार18सितम्बर -द्वादशी श्राद्ध, शुक्रवार 19सितम्बर-त्रयोदशी श्राद्ध, शनिवार 20 सितम्बर -चतुर्दशी श्राद्ध, रविवार 21सितम्बर,-सर्व पितृ विसर्जन श्राद्ध। इस प्रकार श्राद्ध पक्ष की 16दिवसीय अवधि होती है।
श्राद्ध पक्ष में सावधानियां –
1-तामसिक भोजन का बिल्कुल प्रयोग न करें।2-नये वस्त्र व आभूषण न खरीदें।3-बाल नाखून आदि न काटें।4-इन्द्रिय निग्रह का पालन करें।5-किसी भी प्रकार से क्रोध व इर्ष्या न करें।6-सकारात्मक चिन्तन रखें।7-ब्राह्मणो व अतिथियों का सम्मान करें।8-ब्राहृमणो व अतिथियों को भोजन कराते समय भोजन को एक हाथ से न लें जायें, एक हाथ से ले जाने पर भोजन दूषित हो जाता है।
9, ब्राह्मणों को भोजन करते समय मौन रहना चाहिए।10-, श्राद्ध में तिलों का् प्रयोग अधिक मात्रा में करना चाहिए।11-यदि घर की स्थिति अच्छी नहीं है तो केवल शाक,,,,हरी शब्जी,,,,,,से भी श्राद्ध कार्य कर सकते हो।12-यदि कुछ भी उपलब्ध नहीं है है तो दक्षिण दिशा की ओर मुख करके आकाश की ओर दोनों भुजाओं को उठाकर इस तरह की प्रार्थना करनै मात्र से श्राद्ध का कार्य सम्पन्न किया जा सकता है —हे मेरे पितृगण – मेरे पास कुछ नहीं है ।मेरे पास आप के लिए श्रद्धा और भक्ति है। मैं इन्हीं के द्वारा आपको तृप्त करना चाहता हूं। आप तृप्त हों मैंने शास्त्र के निर्देशानुसार दोनों भुजाओं को आकाश में उठा रखा है।गाय को हरी घास खिलाकर भी श्राद्ध का महात्म्य माना जाता है। श्राद्ध की सम्पन्नता के लिए स्वधा देवी का ध्यान करना भी बहुत जरूरी है। इनका मूल मंत्र इस प्रकार से है -ऊ ह्लीं श्रीं क्लीं स्वधा देव्यै स्वाहा । इस मन्त्र का जाप करने से अलौकिक शान्ति मिलती है।
श्राद्ध का होना बहुत जरूरी है।पितृ की सन्तुष्टि के लिए श्रद्धा पूर्वक किये जाने वाले तर्पण ब्राह्मण भोजन दान आदि कर्मों को श्राद्ध कहा जाता है। शास्त्रों में इसे पितृ यज्ञ भी कहा गया है।
श्राद्ध करने से पितृ दोष ऋण से मुक्ति मिलती है। मार्कंडेय पुराण में कहा गया है कि श्राद्ध करने से संतुष्ट होकर पितृ श्राद्ध कर्ता दीर्घायु, सन्तति , धन विद्या तथा सभी प्रकार के सुख और मृत्यु के बाद स्वर्ग एवं मोक्ष की प्राप्त होती है ।पितरों के निमित्त तिथि के अनुसार तर्पण देने से पूरे परिवार की अदभुत व कल्याणकारी प्रगति होती है।
श्राद्ध के विषय में महाभारत की एक कथा में इस तरह का वर्णन देखने को मिलता है कि एक बार अंगराज कर्ण घायल होकर अर्द्ध मृत्यु को प्राप्त हुए ।स्वर्ग की प्राप्ति होने पर भी उन्हें भूख प्यास का अनुभव हुआ तो उन्होंने भोजन पानी मांगा ।तब धर्मराज ने उन्हें सोना खाने को और पीने के लिए दिया और कहा तुमने जीवन भर सोने का दान किया है। इसलिए सोने का उपभोग करो ।तब कर्ण ने आश्विन कृष्ण पक्ष को 15 दिन पृथ्वी लोक में आकर की अन्न जल दान किया तब उन्हें वहां भोजन व जल की प्राप्त हुई।
श्राद्ध में संकल्प लेने के बाद पांच पत्तों में भोजन सामग्री रखनी चाहिए। पहले पत्ते में गाय को दूसरे में स्वान को , तीसरे में कौवा को चौथे में देवताओं को और पांचवें पत्ते में छोटी-छोटी चीटियों के लिए भोजन सामग्री रखनी चाहिए।इसके बाद ब्राह्मण को भोजन दक्षिणा देकर श्रद्धा से विदा करना चाहिए।