20 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा दीपावली का महापर्व : डॉक्टर मंजू जोशी

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प्रख्यात ज्योतिषाचार्य डॉ मंजू जोशी ने दीपावली पर्व को लेकर समस्त प्रकार के संशय को समाप्त करते हुए शास्त्र सम्मत तर्क देते हुए समस्त सनातन प्रेमियों से आह्वान किया है कि दीपावली का महापर्व 20 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा 20 अक्टूबर के संदर्भ में डॉक्टर मंजू जोशी ने क्या तर्क दिए हैं उन्हीं के शब्दों में समझते हैं
एक राष्ट्र, एक धर्म एक पर्व, अनुसार 20 अक्टूबर 2025 दीपावली निर्णय सुनिश्चित*

सत्य सनातन वैदिक धर्म की जै

सभी सनातनीय पाठकों धर्मावलंबियों को यथायोग्य अभिवादन।

दीपावली को लेकर आम जनमानस में भ्रम की स्थिति बनी हुई थी, जो कि अब पूर्णतया समाप्त हो चुकी है, संपूर्ण राष्ट्र के विद्वानों ने ‘एक राष्ट्र, एक धर्म,एक पर्व’ का बिगुल बजाते हुए संपूर्ण भारतवर्ष में 20 अक्टूबर 2025 को ही सर्वसम्मति से एवं शास्त्र सम्मत होकर दीपावली पर्व मनाने का संकल्प लिया है।

वैसे भी एक राष्ट्र में रहते हुए अलग-अलग दिन पर्व मनाने से सनातन धर्म केवल उपहास का केंद्र बनकर ही रह गया था और विगत वर्ष की भांति ही इस वर्ष भी विवाद उत्पन्न हुए जो की उचित नहीं है,
मेरा व्यक्तिगत मत है दो पर्व और उससे संबंधित पूर्व में ही मतभेद/विवाद आने वाली पीढ़ी के लिए भी अच्छा संदेश नहीं है, हम आने वाली पीढ़ी को क्या शिक्षा दे रहे हैं और हम सनातन हित के लिए क्या कर रहे हैं?
यह समय आत्म हित का नहीं अपितु धर्म हित और राष्ट्र का है।
पर्व का अर्थ ही है अपनी परंपराओं/ पुण्यर्कार्यों को उत्साह से मनाना, किसी भी पर्व से पूर्व ही यदि इस प्रकार से विवाद उत्पन्न होने लगे, तो इतिहास साक्षी रहेगा आने वाली पीड़ी ऐसे विवादित पर्वों का बहिष्कार ही करेगी।
यह किसी भी पंचांगकार के लिए भी अहम् और हठ का विषय होना ही नहीं चाहिए। यह समय तो अपनी श्रेष्ठता और विद्वता को सिद्ध करने का है एक सच्चे संतानीय हिन्दू होने के नाते।
एक तरफ हम विश्व गुरु होने की बात करते हैं दूसरी तरफ छोटी-छोटी बातों पर व्यर्थ विवाद करने लगते हैं। ऐसे बनेंगे हम विश्व गुरु?
जो भी व्यक्ति पर्वतीय परंपराओं की बात कर रहे हैं उन सभी से मेरा प्रश्न है पर्वतीय क्षेत्र सनातन धर्म एवं भारतवर्ष से भिन्न है क्या?

मेरा मत तो यह है, जब भी भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो और मन में संशय उत्पन्न हो उस स्थिति में महाभारत में लिखे हुए इस श्लोक का अवलोकन करना चाहिए, और इसी प्रकार निर्णय लेना चाहिए–
महाभारत के यक्ष-युधिष्ठिर संवाद के दौरान युधिष्ठिर ने इस श्लोक के माध्यम से धर्म के मार्ग को स्पष्ट किया था।
तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्ना नैको ऋषिर्यस्य मतं प्रमाणम् ।
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः सः पन्थाः ।।

अर्थात जीवन जीने के शुद्ध मार्ग के निर्धारण लिए कोई सुस्थापित तर्क न हो, श्रुतियां यानि शास्त्रों तथा अन्य श्रोत भी अलग–अलग प्रकार भ्रांतियां उत्पन्न कर रहे हों, तथा कोई भी एक ऐसा ऋषि/चिंतक/ विचारक ना हो, जिसके मत को अंतिम सत्य माना जा सके, व धर्म का मर्म गुहा( गुफा) में छिपा हो यानी बहुत गूढ़ हो, ऐसे में समाज में श्रेष्ठ व्यक्ति जिस मार्ग को अपनाता है वही अनुकरणीय है।

मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि भारतवर्ष में सभी बड़े धर्मस्थल काशी से लेकर अयोध्या तक, उज्जैन से लेकर बद्रीनाथ तक, 20 अक्टूबर 2025 को ही दीपावली पर्व मनाने का निर्णय ले चुके है। साथ ही हमारे वैदिक ग्रंथ धर्म सिंधु, निर्णय सिंधु, मुहूर्त चिंतामणि इत्यादि ग्रन्थों का भी अवलोकन करते हुए हम सभी को सर्वसम्मति से 20 अक्टूबर 2025 को सहर्ष दीपावली पर्व मनाना चाहिए।

शास्त्रीय प्रमाण

उभयदिने प्रदोषव्याप्तौ परा ग्रह्या।
दण्डैकरजनीयोगे दर्शः स्यात्तु परेऽहनि।
तदा विहाय पूर्वेद्यु परेऽह्नि सुखरात्रिकाः ।‘ (तिथितत्त्व) अर्थात् यदि दोनों दिन प्रदोषव्यापिनी तिथि होय, तो अगले दिन करें-क्योंकि तिथितत्त्व में ज्योतिष का वाक्य है-एक घड़ी रात्रि (प्रदोष के उपरांत भी निशा काल (मध्य रात्रि) का 24 मिनट का समय एक दण्ड कहलाता है) का योग होय तो अमावस्या दूसरे दिन होती है, तब प्रथम दिन छोड़कर अगले दिन सुखरात्रि होती है।) यद्यपि-दीपावली के दिन निशीथकाल में लक्ष्मी का आगमन शास्त्रों में वर्णित है और कर्मकाल (लक्ष्मी पूजन, दीपदान-आदि का काल) प्रदोष माना जाता है। लक्ष्मीपूजन, दीपदान के लिए प्रदोषकाल ही शास्त्र प्रतिपादित है- और वर्ष 2025 में 21 अक्टूबर में इनमें से कोई भी स्थिति बन ही नहीं रही है ना तो तीन मुहूर्त प्रदोष काल में अमावस्या तिथि व्याप्त है और ना ही निशा काल (मध्य रात्रि) में एक दण्ड व्याप्त है। इस स्थिति में दीपावली पर्व केवल 20 अक्टूबर 2025 को ही मान्य होगा। प्रदोष काल का समय होता है तीन मुहूर्त, एक मुहूर्त का समय होता है 48 मिनट, इस प्रकार तीन मुहूर्त का समय होगा 2 घंटा 24 मिनट का( प्रदोष काल), 2 घंटे 24 मिनट के उपरांत भी एक दण्ड (निशा काल) रात्रि का मध्य काल (24 मिनट) तक यदि अमावस्या तिथि व्याप्त हो उस स्थिति में ही दूसरे दिन पर्व मनाना शास्त्र सम्मत होता है।
परंतु वर्ष 2025 में अमावस्या तिथि 21 अक्टूबर 2025 को सायंकाल 05:54 पर समाप्त हो जाएगी। धार्मिक नियमानुसार 21 अक्टूबर 2025 को अमावस्या तिथि ना तो प्रदोष में उपलब्ध है ना ही निशा काल में। अतः 20 अक्टूबर 2025 को ही दीपावली पर्व मनाना शास्त्र सम्मत है।

कुछ जातक पुरुषार्थ चिंतामणि के इस श्लोक को अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत कर रहे हैं जिसका सही अर्थ आपके सम्मुख प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगी–
पूर्वत्रैव व्याप्तिरिति पक्षे परत्र यामत्रयाधिकव्यापिदर्श दर्शापेक्षया प्रतिपदृद्धिसत्त्वे लक्ष्मीपूजादिकमपि परत्रैवेत्युक्तम्।
इस श्लोक के अनुसार केवल पहले दिन (पूर्वत्र) ही तिथि की व्याप्ति है, यदि दूसरे दिन (परत्र) अमावस्या (दर्श) तीन या उससे अधिक ‘याम’ (लगभग नौ घंटे) तक व्याप्त रहती है, जबकि पहले दिन की तुलना में प्रतिपदा तिथि भी बढ़ रही हो, तो लक्ष्मी पूजा जैसे अनुष्ठान दूसरे दिन ही किए जाने चाहिए। ( सरल भाषा में समझिए कि पहले दिन और दूसरे दिन की अपेक्षा जिस दिन अमावस्या तिथि ज्यादा होगी उसी दिन पर्व मनाया जाएगा तो इस वर्ष 20 अक्टूबर को ही अमावस्या तिथि वृद्धि गामिनी होगी)
एतन्मते उभयत्र प्रदोषाव्याप्ति-पक्षेपि परत्र दर्शस्य सार्धयामत्रयाधिक-व्याप्ति-त्वात्परैव युक्तेति भाति।।
यह नियम एक और विशेष परिस्थिति का उल्लेख करता है। लक्ष्मी पूजा के लिए ‘प्रदोष काल’ (सूर्यास्त के बाद के 2 घंटा 24 मिनट का समय) सबसे शुभ माना जाता है। यदि किसी वर्ष में, दोनों दिनों में प्रदोष काल में अमावस्या तिथि अव्याप्त हो, तो निर्णय के लिए एक वैकल्पिक नियम का प्रयोग किया जाता है। प्रथम दिवस अमावस्या प्रदोष में व्याप्त ना हो, दूसरे दिन की अमावस्या की कुल अवधि को देखते हैं। यदि यह अवधि साढ़े तीन याम (नौ घंटे से अधिक) तक फैली हो, तो उस परिस्थिति में दूसरे दिन ही लक्ष्मी पूजन करने का मत दिया जाता है। परंतु वर्ष 2025 में 20 अक्टूबर को अपराह्न में ही अमावस्या तिथि प्रारंभ हो जाएगी प्रदोष काल एवं निशिद्ध काल में भी व्याप्त होगी इसलिए यहां पर यह नियम प्रयोग नहीं किया जा सकता।

अतः शास्त्रों को यदि तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत न किया जाए,तो सभी स्पष्ट रूप से समझ सकेंगे कि 20 अक्टूबर 2025 को ही दीपावली पर्व मनाना शास्त्र सम्मत है।
अंत में यही कहूंगी भ्रम में ना पड़े स्वयं की बुद्धि विवेक का प्रयोग कर एक राष्ट्र एक धर्म एक पर्वानुसार 20 अक्टूबर 2025 को दीपावली पर्व मनाइए–

यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किं।
लोचनाभ्याम विहीनस्य दर्पण किं करिष्यति।।
अर्थात कोई भी ज्ञान,भले ही वह शास्त्रों/पुस्तकों में लिखा हो, तब तक निरर्थक है जब तक व्यक्ति उसे समझने और उसका सही उपयोग करने हेतु अपनी बुद्धि प्रयोग ना करे, जिस प्रकार, एक नेत्रहीन व्यक्ति के लिए दर्पण पूरी तरह से निरर्थक है,क्योंकि दृष्टि न होने के कारण दर्पण में कुछ भी देख नहीं सकता, उसी प्रकार एक विवेकहीन व्यक्ति के लिए शास्त्र और ज्ञान किसी काम के नहीं होते।
ज्योतिषाचार्या डॉ मंजू जोशी
8395806256

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