क्यों दी जाती है दक्षिणा, क्या है इसका महत्व, समझा रहे हैं आचार्य बहुगुणा

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एक का फोन आया कि आप शास्त्री जी बोल रहे हैं??
“हां ” कहने पर बोले कि आपका नंबर फलां आदमी ने दिया है- पत्नी बिमार है कोई ज्योतिषीय उपाय बताएं। तथा बेटे की सर्विस के योग कब हैं यह भी बता देना… और हां! आपका बड़ा नाम सुना है इसलिए बेटी की कुंडली मिलान कर दें बड़ी मेहरबानी होगी। , डिटेल वटसैप कर रहा हूं..

उपरोक्त तीनों काम को तसल्ली से देखने के लिए लेपटॉप और दिमाग का एक घंटा कम से कम खर्च हो जाएगा . तो लग जाइए…. सोच क्या रहे हैं???

                     ( दूसरा दृश्य)

मकान में प्रवेश करते हुए एक महिला ने पूछा कि शास्त्री जी का मकान यही है??

अंदर आने पर भेजने वाले का रिफ्रेंस देकर बैठ गई और चाय बिस्कुट के साथ साथ बेटे/बहू/नाती/पोतों की कुंडलियां दिखाकर दो घंटे पी गई।

जाते जाते यह कह गई की जरूरत हुई तो फिर दर्शन दूंगी, पता तो मुझे मालूम हो ही गया है।

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उपरोक्त दोनों दृश्यों में दक्षिणा का क्या हुआ???

कोई जानना नहीं चाहता….

अब मुद्दे पर आईये…

दक्षिणा किसी भी धार्मिक कार्य की पत्नी कही गई है जो कार्य पूरा होते ही तुरंत दे देनी चाहिए।
क्योंकि आप चाहते हैं कि हमें पंडित जी ने जो बताया है उसका फल भी मिलना चाहिए तो यह सुनिश्चित कर लें कि क्या आपने उस कार्य की दक्षिणा दे दी है???
क्योंकि फल दक्षिणा का पुत्र है।

वह तभी मिलेगा जब आप श्रद्धापूर्वक दक्षिणा देंगे।
अन्यथा इच्छित फल की उम्मीद न रखें तथा यह दोष भी नहीं रखें कि पंडित जी ने बताया था तो ऐसा हुआ क्यों नहीं। आपके इस आचरण से तो जो होने की उम्मीद है वह भी समाप्त हो जाएगी–

यज्ञोदक्षिणयासार्द्धंपुत्रेणफलेनच ।

कर्म्मिणांफलदाताचेत्येवंवेदविदोविदुः ॥

कृत्वाकर्म्मतस्यैवतूर्णंदद्याच्चदक्षिणाम् ।

तत्कर्म्मफलमाप्नोतिवेदैरुक्तमिदंमुने ! ॥

(देवी भागवत)

ऐसे यजमानों का सब फल निष्फल हो जाता है। और यजमान को ब्राह्मण धन चुराने का दोष लगता है , वह लक्ष्मीहीन/रोगी/दुःखी और पापी हो जाता है। उसके समस्त कार्य व्यर्थ हो जाते हैं —

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कर्म्मतद्यजमानानांसर्व्वञ्चनिष्फलंभवेत् ।

ब्रह्मस्वापहारीकर्म्मार्होऽशुचिर्नरः ॥

दरिद्रोव्याधियुक्तश्चतेनपापेनपातकी ।

तद्गृहाद्यातिलक्ष्मीश्चशापंदत्त्वासुदारुणम् ॥

पितरोनैवगृह्णन्तितद्दत्तंश्राद्धतर्पणम् ।

एवंसुराश्चतत्पूजां_तद्दत्तामग्निराहुतिम्।।

(देवी भागवत)

अतः ब्राह्मण चाहे परिचित भी क्यों न हो आपका उचित दक्षिणा देने का कर्तव्य बनता ही है। अधिक परिचय होने के कारण यदि ब्राह्मण दक्षिणा लेने से स्वयं मना कर दे तब भी आपको उस ब्राह्मण की पुत्री/पुत्र आदि को दक्षिणा देने का प्रयास करना चाहिए। यदि फिर भी न लें तो उस दक्षिणा का गुड़/प्रसाद गायों को खिलाएं अथवा किसी साधु को भोजन/दक्षिणा उस निमित्त अवश्य देवें।
यही शास्त्रीय नियम है।

ब्राह्मण भी उचित दक्षिणा मांगने से न शर्माएं क्योंकि धार्मिक कार्यों में यदि देने वाला न दे और ग्रहण करने वाला ब्राह्मण न मांगें तो दोनो नरकगामी होते हैं क्योंकि वह कार्य बिना दक्षिणा के फलदायी नहीं रहेगा और परम्परा भी नष्ट हो जाएगी।
अतः ब्राह्मण उचित दक्षिणा अवश्य स्वीकार करें !

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दातादीयतेदानंग्रहीतान_याचते ।

उभौतौनरकंयातश्छिन्नरज्जुर्यथाघटः ।।

            ब्रह्मवैवर्त्ते प्रकृतिखण्डम् ॥

सामान्य जन भी ध्यान दें कि चाहे काम हो या न हो जब डाक्टर/वकील आदि को उचित फीस देकर आते ही हैं
तो ज्ञानवान ब्राह्मण के विषय में ऐसी कुत्सित मानसिकता क्यों??

लड़की,बहन,बुआ,ब्राह्मण,मन्दिर इन स्थानों पर खाली हाथ न जाएं हमारे पूर्वज भी कह गए हैं कि यदि इनके घर खाली हाथ जाओगे तो खाली हाथ ही आओगे।

निष्कर्ष

किसी भी फल की प्राप्ति हेतु ब्राह्मण से कराया हुआ कोई भी कर्म “#यज्ञ” ही कहलाता है और यज्ञ की पत्नी का नाम #दक्षिणा,जब तक यज्ञ और दक्षिणा अर्थात् पति पत्नी का मिलन नहीं,तब तक “#फलरूपीसंतान” उत्पन्न ही नहीं होगी!
अतः #ब्राह्मण_देवता को कर्म की #दक्षिणा अवश्य दें!

                 🙏 जयश्रीहरिः 🙏

[★★★पण्डित आचार्य बहुगुणा”★★★]

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