सुखी रहने का सहज उपाय बता रहे हैं युग ऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

🌴०४ अक्टूबर २०२५ शनिवार 🌴
🥀आश्विनशुक्लपक्षद्वादशी २०८२🥀
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‼️ऋषि चिंतन ‼️
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❗सुखी रहने का सहज उपाय❗
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👉 मनुष्य को “सुखी” अथवा “दुःखी” होने का कारण अपने अंतःकरण में ही खोजना चाहिए । जो परिस्थितियों को कोसता अथवा सुख के लिए धन्यवाद दिया करता है, वह अपनी अल्पज्ञता को ही प्रकट करता है। यह सर्वदा सत्य है कि कोई भी मनुष्य दुःख की कामना तो करता नहीं, वह तो सदा सुख ही चाहा करता है, इसलिए उसे अपनी यह चाह पूरी करने के लिए परिस्थितियों से अधिक मन पर ध्यान देने का प्रयत्न करना चाहिए । उसे ईर्ष्या, द्वेष, चिंता, क्षोभ अथवा असंतोष से अभिभूत न होने देना चाहिए । इस प्रकार का निरभिभूत मानस गौमुखी गंगाजल की तरह निर्मल एवं प्रसन्न होता है, मन प्रसन्न है, तो संसार में सभी ओर प्रसन्नता दृष्टिगोचर होगी, सुख ही सुख अनुभव होगा, तब ऐसी सहज प्रसन्नता की दशा में परिस्थितियों के अनुकूल होने की अपेक्षा नहीं रहती । परिस्थितियाँ अनुकूल हैं, मनभावनी हैं, बहुत अच्छा । परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं तब भी कोई अंतर नहीं पड़ता । प्रसन्न मन मानव उन्हें अनुकूल करने के लिए प्रयत्न करेगा, संघर्ष करेगा, पसीना बहाएगा, मूल्य चुकाएगा, कष्ट उठाएगा किंतु दुःखी नहीं होगा । वह यह सब हँसते-हँसते प्रसन्न मनोमुद्रा में ही करता रहेगा । उसे परिश्रम में आनंद आएगा, संघर्ष में सुख मिलेगा, असफलता पर हँसी आएगी और सफलता का स्वागत करेगा। जीवन की विविध परिस्थितियाँ तथा विविध उपलब्धियाँ उसकी प्रसन्नता को बढ़ा ही सकती हैं, घटा नहीं सकतीं ।
👉 एक मात्र सुख की आकांक्षा रखने वाले और दुःख-क्लेशों से भयभीत होने वाले न केवल स्वार्थी ही होते हैं, अपितु “कायर” भी होते हैं। कायरता तो मनुष्य जीवन का कलंक है, जो संघर्षों-मुसीबतों तथा आपत्तियों से डरता है। उनके आने पर निराश अथवा निरुत्साहित हो जाता है, वह और कोई बड़ा काम कर सकना तो दूर साधारण मनुष्यों की तरह साधारण जीवनयापन भी नहीं कर सकता । संसार में न तो आज तक कोई ऐसा मनुष्य हुआ है और न आगे ही होगा जिसके जीवन में सदा प्रसन्नता की परिस्थितियाँ ही बनी रहें, उसे दुःख-क्लेश में तप्त झोंके न सहन करने पड़े हों । राजा से लेकर रंक तक और बलवान् से लेकर निर्बल तक प्रत्येक प्राणी को अपनी-अपनी स्थिति में, अपनी तरह के दुःख-क्लेश उठाने ही पड़ते हैं। कभी शारीरिक कष्ट, कभी आध्यात्मिक अंधकार मनुष्य को सताते ही रहते हैं। सदा सर्वदा कोई भी व्यक्ति कष्ट एवं कठिनाइयों से सर्वदा मुक्त नहीं रह सकता, तब ऐसी अनिवार्य अवस्था में किसी प्रकार की कठिनाई आ जाने पर निराश, चिंतित अथवा क्षुब्ध हो उठना इस बात का प्रमाण है कि हम संसार के शाश्वत् नियमों से सामंजस्य स्थापित नहीं करना चाहते, हम असामान्यता के प्रति हठी अथवा दुराग्रही बने रहना चाहते हैं ।
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।। सुख चाहें तो यों पाएं ।। पृष्ठ ०५
🍁।।पं श्रीराम शर्मा आचार्य।।🍁
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