गौग्रास देने का क्या है महत्व बता रहे हैं आचार्य प्रकाश बहुगुणा

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‘ गोग्रास (बलि/भोजन)
“गाय की सेवा से आरोग्यता, धन धान्य तथा सभी पुण्य फल मिलते हैं। महाराज दिलीप ने गाय की सेवा की व जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई, महाराज दिलीप की गाय सेवा अनुपम थी, कविकुल गुरु कालीदास ने अपने रघुवंश महाकाव्य में बहुत अच्छा वर्णन कर रखा है। उन्होंने ने कहा कि-
स्थित: स्थितामुच्चलित: प्रयातां
निषेदुषीमासनबन्धधीर:।
जलाभिलाषी जलमाददानां
छायेव तां भूपतिरन्वगच्छत् ।।
महाराज दिलीप सन्तान सुख के लिए गाय की सेवा अनन्य भाव से करते थे। वह खड़ी रहती तो राजा खड़े रहते, वह चलती तो राजा भी चलते। वह बैठती तो राजा भी बैठते, वह पानी पीती तो राजा भी पानी पीते। ठीक छाया की तरह राजा गाय का अनुगमन करते थे।(रघु०/२/६)
गाय की सेवा से मृत्यु तक को अपने अधीन किया जा सकता है। जीवन सात्त्विक बनता है। भगवद्भक्ति की प्राप्ति गाय की सेवा में निहित है। गो सेवा व राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित व्यक्ति का हृदय, मन और मस्तिष्क शक्ति शाली बनता है। ऐसे व्यक्ति की इच्छा शक्ति भीष्म पितामह की तरह प्रबल हो जाती है। अतः किसी न किसी रूप में गाय सेवा को प्रमुखता देनी चाहिए। गाय को आश्रय देना आवश्यक है, यही कारण है कि पहली रोटी गाय के लिए रखी जाती है और पितृ कार्य में गोग्रास रखा जाता है, इतना ही नहीं कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि ‘गोवत्सद्वादशी’ के नाम से जानी जाती है। इस दिन व्रत का विधान भी है,
वत्स पूजा व्रतश्चैव कर्तव्यो प्रथमेऽहनि।
गोमाता को गोग्रास देकर चरणों में अर्घ्य देकर प्रणाम करना श्रेयस्कर है।
सर्वदेवमये देवि सर्वदेवैरलंकृते।
मातर्ममाभिलषितं सफलं कुरु नन्दिनि।।
“ब्रह्मचर्य पूर्वक पृथ्वी पर शयन करना चाहिए, तवे पर पकाया भोजन नहीं करना चाहिए। इसके प्रभाव से मानव सभी सुखों का उपभोग कर, गाय के शरीर में जितने रोएं उतने वर्षों तक गोलोकवास करता है। महर्षि भृगु ने गाय की सुरक्षा की, वह गाय जो भगवान शंकर ने परीक्षा हेतु निर्मित की थी। परीक्षा में सफल होते ही शंकर भगवान प्रकट हुए मां पार्वती ने भी गो रूप छोड़ा, ऋषियों ने भगवान शंकर व मां पार्वती का पूजन किया, उस दिन कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि थी। तब से गोवत्स द्वादशी के व्रत का प्रारम्भ हुआ। महाराज उत्तान पाद ने भी इस व्रत का प्रचार किया क्योंकि महारानी सुनीति ने इस व्रत के प्रभाव से ध्रुव जैसे पुत्र को प्राप्त किया। आज भी माताएं पुत्र रक्षा एवं सन्तान सुख के लिए इस व्रत के साथ गाय का पूजन करते हैं। गाय का दूध, उससे बना दही व घृत, गाय का गोबर व गो मूत्र इन पांचों के मिश्रण से बना पञ्च गव्य मानव शरीर के हर प्रकार के मल से शुद्ध करता है। गो सेवा से व्रत का महत्व व पितरों के प्रति श्रद्धा और अधिक बढ़ जाती है, यह ध्रुव सत्य है। पितृपक्ष में आप सबका मंगल हो,यह पुनीत कामना करता हूं। “‘