मानव शरीर की क्या है उपयोगिता बता रहे हैं आचार्य प्रकाश बहुगुणा

मानव शरीर कर्मयोनि से तत्त्वबोध तक
मनुष्य शरीर को शास्त्रों में अत्यंत दुर्लभ और अमूल्य माना गया है। यह ऐसा वरदान है, जिसकी चाह देवता भी करते हैं, क्योंकि केवल यही शरीर कर्मयोनि है, जहाँ नये कर्म करने की स्वतंत्रता और सामर्थ्य है। देव शरीर भोगयोनि होने के कारण केवल पूर्वकृत कर्मों का फल भोगने के लिए है, परन्तु मनुष्य शरीर में जप, तप, दान, धर्म और हरिनाम का संचय करने का अनुपम अवसर प्राप्त होता है। यह शरीर जब तक स्वस्थ और शक्तिशाली है, तब तक इसका सदुपयोग कर लेना चाहिए, क्योंकि जो इस अवसर को गंवाता है, वह मृत्यु के पश्चात् पछतावे के सिवा कुछ प्राप्त नहीं करता। जैसा कि शास्त्र कहते हैं, “स पश्चात् तप्यते मूढो, मृतो गत्वात्मनो गतिम्।”
अर्थात्, मृत्यु के बाद जब यमराज के समक्ष भगवान से विमुख रहने का दंड मिलता है, तब मनुष्य को अपनी भूलों पर गहरा पश्चाताप होता है।
महाभारत में यक्ष-युधिष्ठिर संवाद इसका जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है। यक्ष के प्रश्न, “इस सृष्टि का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?”
इसके उत्तर में युधिष्ठिर कहते हैं
अहन्यहनिप भूतानि गच्छन्ति यममंदिरम्,
शेषाः स्थिरत्वमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम्।
अर्थात्- प्रतिदिन सैकड़ों प्राणी यमलोक को प्रस्थान करते हैं, फिर भी शेष बचे लोग इस सत्य से कोई शिक्षा नहीं लेते। वे स्वयं को अमर मानकर सांसारिक भोग-विलास में डूबे रहते हैं और भगवान का स्मरण नहीं करते। इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है? यह कथन मानव की अज्ञानता और मृत्यु के प्रति उदासीनता को उजागर करता है।
संसार में लौकिक सुख-सुविधाएँ कर्मों के द्वारा प्राप्त हो सकती हैं, किन्तु परमात्मतत्त्व की प्राप्ति केवल विवेक से ही संभव है। कर्म जीवन को सुखमय बना सकते हैं, परन्तु जीवनमुक्ति का मार्ग विवेक से ही प्रशस्त होता है। परमात्मा तो सभी के हृदय में विद्यमान है; उससे किसी का वियोग कभी हुआ ही नहीं, न हो सकता है। परन्तु इस सत्य का बोध केवल विवेकी पुरुष को ही होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति विवेक का आदर करता है और उसे महत्व देता है, वही तत्त्वबोध को प्राप्त करता है। अविवेकी व्यक्ति इस सत्य से अनभिज्ञ रह जाता है।
अतः मनुष्य जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक सुखों की प्राप्ति नहीं, अपितु विवेक के द्वारा परमात्मा के साथ अपने अटूट संबंध को पहचानना है। इस दुर्लभ मानव शरीर का उपयोग हरिनाम, भक्ति, और धर्म के मार्ग पर चलकर करना चाहिए, ताकि मृत्यु के पश्चात् पछतावे का अवसर न आए। विवेक को जागृत कर, भगवान के प्रति समर्पण के साथ जीवन जीना ही इस मानव जन्म की सार्थकता है।
आज का दिन शुभ मंगलमय हो।
