आखिर क्यों कहते हैं क्रोध को सर्वनाशी शत्रु पढ़िए युग ऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का आलेख

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🌴।।२३ जून २०२५ सोमवार।।🌴
//आषाढ़कृष्णपक्षत्रयोदशी२०८२ //
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‼️ऋषि चिंतन ‼️
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‼️”क्रोध” सर्वनाशी महाशत्रु‼️
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👉 डॉक्टर “अरोली” और “केनन” ने अनेक परीक्षणों के बाद यह घोषित कर दिया है कि “क्रोध” के कारण अनिवार्यतः उत्पन्न होने वाली रक्त की विषैली शर्करा हाजमा बिगाड़ने के लिए सबसे अधिक भयानक है। ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी के स्वास्थ्य निरीक्षक “डॉ. हेमन बर्ग” ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है- “इस वर्ष परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने वाले छात्रों में अधिकांश चिड़चिड़े मिजाज के थे।” पागलखानों की रिपोर्ट बताती है कि “क्रोध” से उत्पन्न होने वाले मस्तिष्क रोगों ने अनेकों को पागल बना दिया। “डॉक्टर जे. एस्टर” का कथन है कि पंद्रह मिनट “क्रोध” करने में शरीर की इतनी शक्ति खरच हो जाती है, जितनी से कोई भी व्यक्ति साढ़े नौ घंटे परिश्रम कर सकता है। “बाईबिल” कहती है कि “क्रोध” को लेकर सोना अपनी बगल में जहरीले साँप को लेकर सोना है। सचमुच क्रोध की भयंकरता सब दृष्टियों से बहुत अधिक है।
👉 इस महाव्याधि का शरीर और मन पर जो दूषित असर होता है, वह जीवन को पूरी तरह असफल बना देता है; अशांति, आशंका, आवेश उसे घेरे रहते हैं। पास-पड़ोसियों की दृष्टि में वह घृणा का पात्र बन जाता है। गृहकलह छिड़ा रहता है। प्रसिद्ध दार्शनिक “सोना” कहते हैं- “क्रोध” शराब की तरह मनुष्य को विचारशून्य, दुर्बल एवं लकवे की तरह शक्तिहीन कर देता है। दुर्भाग्य की तरह यह जिसके पीछे पड़ता है, उसका सर्वनाश करके ही छोड़ता है।” “डॉक्टर पूरनचंद खत्री” का कथन है- “क्रोध” का मानसिक रोग किसी शारीरिक रोग से कम नहीं है। दमा, यकृत-वृद्धि, गठिया आदि रोग जिस प्रकार आदमी को घुला-घुलाकर मार डालते हैं, इसी प्रकार “क्रोध” का कार्य होता है। कुछ ही दिनों में क्रोधी के शरीर में कई प्रकार के विष उत्पन्न हो जाते हैं, जिनकी तीक्ष्णता से भीतरी अवयव गलने लगते हैं।”
न्यूयार्क के वैज्ञानिकों ने परीक्षा करने के लिए गुस्से में भरे हुए मनुष्य का कुछ बूँद खून लेकर पिचकारी द्वारा खरगोश के शरीर में पहुँचाया। नतीजा यह हुआ कि बाईस मिनट बाद खरगोश आदमियो को काटने दौड़ने लगा। पैंतीसवें मिनट पर उसने अपने को काटना शुरू कर दिया और एक घंटे के अंदर पैर पटककर मर गया। “क्रोध” के कारण उत्पन्न होने वाली विषैली शक्कर खून को बहुत अशुद्ध कर देती है। अशुद्धता के कारण चेहरा और सारा शरीर पीला पड़ जाता है। पाचनशक्ति बिगड़ जाती है। नसें खिचती हैं एवं गरमी, खुश्की का प्रकोप रहने लगता है। सिर का भारीपन, आँखों तले अँधेरा, कमर में दरद, पेशाब का पीलापन, क्रोधजन्य उपद्रव हैं। अन्य अनेक प्रकार की व्याधियाँ उसके पीछे पड़ जाती हैं। एक अच्छी होती है तो दूसरी उठ खड़ी होती है और दिन-दिन क्षीण होकर मनुष्य अल्पकाल में ही काल के गाल में चला जाता है।
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स्वस्थ और सुंदर बनने की विद्या पृष्ठ १७
🍁पं श्रीराम शर्मा आचार्य🍁
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