इस देव दरबार में पहुंचते ही मिट जाती हैं समस्त विपदाएं

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देवभूमि उत्तराखंड अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ आध्यात्मिक आभा के रूप में भी जानी जाती है धर्म एवं अध्यात्म के यहां कई प्रमुख शिवालय एवं शक्तिपीठ है जहां वर्ष वर्ष श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है जहां जाकर परम शांति एवं संतोष की प्राप्ति होती है और मनुष्य तमाम प्रकार के झंझावातों से मुक्त होकर परम सत्ता की कृपा प्राप्त करता है ऐसा ही एक मनोहरी अलोकिक दिव्य स्थल जनपद अल्मोड़ा के दूनागिरी क्षेत्र में स्थित है जिसे मां दूनागिरी मंदिर के नाम से जाना जाता है

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मां दूनागिरी का संपूर्ण क्षेत्र दिव्य जड़ी बूटियां से भरा पड़ा है जिसकी गाथा त्रेता युग से जुड़ी हुई है लक्ष्मण के मूर्छित होने पर पवन पुत्र हनुमान द्वारा द्रोणागिरी पर्वत से दिव्य बूटी लाई गई दिव्य बूटी का एक अंश इस स्थल पर भी गिरा जिसे दूनागिरी के रूप में जाना जाता है

प्राकृतिक सौंदर्य के बीच आस्था के पथ पर श्रद्धालु माता का जयकारा लगाते हुए इस स्थान पर पहुंचते हैं इस स्थान पर जनपद अल्मोड़ा के द्वाराहाट से 14 किलोमीटर दूर मंगली खान से करीब 500 सीढ़ी ऊपर चढ़कर पहुंचा जा सकता है यह दिव्य स्थल महा अवतार बाबा की तपस्थली भी बताया जाता है मंदिर के सामने भटकोट पर्वत दिखाई देता है जो अनेक आध्यात्मिक तरंगों का केंद्र माना जाता है भटकोट पर्वत को राजा भरत की तपस्थली भी बताया जाता है तथा यहां पांडवों का प्रवास भी कहा जाता है दूनखगिरी मंदिर के सामने ही संत कुटीर है जहां महा तपस्वी धनवंतरी गिरी भटकोटी महाराज जी साधनारत हैं भटकोटी महाराज जी बताते हैं कि श्रद्धा के साथ माता के दरबार में की गई पूजा कभी निष्फल नहीं जाती है और व्यक्ति को सर्व मंगल प्राप्त होता है मंदिर के समीप ही मां पार्वती झूला है श्रद्धालु बड़े उत्साह के साथ झूले में बैठकर भी आनंद लेते हैं यहां मनौती पूरी होने के बाद चुनरी चढ़ाने की भी परंपरा है पार्वती झूला के समीप एवं मार्ग में जगह-जगह श्रद्धालुओं के द्वारा चुनरी बांधी गई है जो इस बात का संकेत है कि इस दरबार में की गई पूजा तत्काल फलदाई है या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमो नमः

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