सावधान: इन स्थानों पर नहीं होता है लक्ष्मी का निवास

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वे स्थान जहां लक्ष्मी का वास नहीं होता है
कन्यान्नवेद विक्रेता नरघाती च हिंसक:।
नरकागार सदृशं यामि तस्य न मंदिरम।।
मातरं पितरं भार्यां गुरुपत्नीं गुरो: सुताम।
अनाथां भगिनीं कन्यामनन्याश्रयबान्धवान।।
स्वदत्तां परदत्तां वा ब्रह्मवृत्तिं सुरस्य च।
यो हारेज्ज्ञानशीलश्च यामि तस्य न मंदिरम।।
यत्कर्म दक्षिणाहीनं कुरूते मूढ़धी शठ:।
स पापी पुण्यहीनश्च यामि तस्य न मंदिरम।।

अर्थात:- जो लोग कन्या का विक्रय करते हैं अर्थात जो पिता वर पक्ष से धन लेकर या धन के बदले अपनी कन्या का दान करता है जो अन्न का विक्रय करते हैं अर्थात जो अधिक लाभ के लिए मिथ्या भाषण कर और मिलावट कर अन्न का विक्रय करते हैं जो वेद का विक्रय करते हैं अर्थात जो जप तप यज्ञ आदि कर्मों के लिए यजमान से ठगी कर उससे धन का शोषण करते हैं जो नरघाती हैं अर्थात हत्यारे हैं जो हिंसक प्रवृत्ति के हैं तथा जिनका घर नरककुंड के समान है (अर्थात जिनके घर तीन ओर से बंद है और जिनमें हर समय अंधेरा रहता है कहीं से सूर्य और चंद्रमा का प्रकाश तथा हवा का बहाव अंदर नहीं जाता है) वह लक्ष्मी देवी वास नहीं करती है जहां माता पिता पत्नी गुरुपत्नी पुत्री गुरुपुत्री बहिन तथा आश्रय रहित अपने बंधु बांधव को सामर्थ्य होते हुए भी कंजूसी के कारण उनका समुचित भरन पोषण नहीं किया जाता है वह लक्ष्मी देवी वास नहीं करती है जहां अपने दिए हुए धन को या दूसरों के दिए हुए धन को जानबूझ कर बलात हरण किया जाता है जहां देवताओं को मंदिरों को दिए धन और संपत्ति का हरण किया जाता है अर्थात जो मनुष्य ऐसा करता है उसके यह लक्ष्मी देवी वास नहीं करती है जो मनुष्य सामर्थ्य होते हुए भी जप तप पूजा पाठ और यज्ञ अनुष्ठान आदि में आचार्य और गुरु से दक्षिणा रहित धर्म कार्यों का आयोजन और संचालन करवाते हैं ( तीन घंटे से कम समय वाले धार्मिक कार्य के लिए यजमान के द्वारा आचार्य या गुरु को अपने आधे दिन के पारिश्रमिक के बराबर दान दक्षिणा देना चाहिए तथा तीन घंटे से अधिक समय वाले धार्मिक कार्यों के आयोजन के लिए यजमान द्वारा अपने आचार्य या गुरु को अपने एक दिन के पारिश्रमिक के बराबर दान दक्षिणा देना चाहिए कृपया स्मरण रखे जैसे समाज में सभी श्रमिकों के लिए काम के बदले दिए जाने वाले पारिश्रमिक या पारितोषिक तय होते हैं कम किसी के भी यहां किया जाय पर दर सभी के लिए एक समान होती है किन्तु आचार्य पुरोहित और गुरु को दिया जाने वाला पारितोषिक यजमान की सामर्थ्य के आनुपातिक होता है यजमान गरीब है तो पारितोषिक यजमान की एक दिन की आय के अनुसार कम होगा और यजमान धनवान है तो भी आचार्य का पारितोषिक यजमान की एक दिन की आय अनुसार ही होगा यजमान द्वारा अपने दैनिक पारिश्रमिक के आनुपातिक आय से कम दक्षिणा देने से यजमान को आचार्य के शोषण और ठगी करने का पाप लगता है इसी प्रकार आचार्य द्वारा यजमान की सामर्थ्य अर्थात एक दिन की आय के अनुपात से अधिक दक्षिणा की मांग करने पर आचार्य को यजमान के शोषण और ठगी का पाप लगता है) वह लक्ष्मी देवी वास नहीं करती है। लेखक आचार्य प्रकाश बहुगुणा ज्योतिष एवं कर्मकांड के जानकार हैं

     
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