क्या पितृपक्ष में किये जा सकते हैं देव कार्य जानिए विद्वान आचार्यों की राय

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श्राद्ध पक्ष जिसे पितृपक्ष कहते हैं इस दौरान कोई भी कार्य पितरों की निमित्त ही किया जाता है विद्वान आचार्यों के मुताबिक इस दौरान कथा पुराण या अन्य धार्मिक मंचन का समय उचित नहीं माना जाता है कुछ लोग पितृ पक्ष के दौरान भी बड़े धार्मिक अनुष्ठान कर कहीं ने कहीं शास्त्र सम्मत कार्य नहीं कर रहे हैं उत्तराखंड के प्रमुख विद्वान आचार्य नैषठिक ब्रह्मचारी दुर्गा दत्त त्रिपाठी जी का कहना है कि पितृपक्ष पितरों के निमित्त ही कार्य किए जाने का पक्ष माना जाता है इस दौरान अन्य कार्य नहीं किए जाने चाहिए क्योंकि वर्ष में पितृपक्ष केवल एक बार आता है तो वह पितरों के निमित्त ही होता है उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में कुछ लोगों ने धार्मिक अनुष्ठानों को व्यापार का धंधा बना दिया है और वे लोग इन चीजों का ध्यान नहीं देते हैं जो शास्त्र सम्मत नहीं है ज्योतिष आचार्य त्रिभुवन उप्रेती का कहना है कि पितृपक्ष में कथा पुराण या बड़े धार्मिक अनुष्ठान नहीं किए जाने चाहिए क्योंकि पितृपक्ष का मतलब यह समय श्राद्ध तर्पण दान पुण्य और पितरों की सुख शांति के निमित्त के जाने का ही समय है मां काली के उपासक ज्योतिषाचार्य अखिलेश चंद्र चमोला कहते हैं कियदि बहुत जरूरी हो तो व्यक्तिगत तौर पर पितरों की शांति के लिए श्रीमद् भागवत का आयोजन किया जा सकता है लेकिन यह पूरी तरह से व्यक्तिगत होता है तथा कोई परिवार विशेष अपने पितरों की शांति के लिए यह कार्य कर सकता है हालांकि श्रीमद् भागवत पुराण पितृपक्ष के अलावा भी किया जाना बेहद फलदाई होता है उन्होंने कहा कि जबरदस्ती से कुछ लोग पितृपक्ष में धार्मिक अनुष्ठानों को कर यह दलील देते हैं कि ईश्वरी कार्य कभी भी किया जा सकता है उन्होंने कहा कि यह तर्क सही नहीं है ईश्वर का स्मरण तो हमेशा सांसों की माला में भी चलता रहता है जरूरी नहीं कि आप पितृपक्ष में ही बड़े धार्मिक अनुष्ठान करें उनका कहना है कि इस दौरान पितृ लोक धरती के सबसे नजदीक होता है और व्यक्ति द्वारा किए गए शुभ अशुभ कार्य के अनुसार पितृ उसका प्रतिफल देते हैं प्रख्यात कथावाचक डॉक्टर मनोज पांडे का कहना है कि पितृपक्ष में यदि जरूरी हो तो पितरों के निमित्त श्रीमद् भागवत किया जा सकता है अन्य कथा पुराण नहीं किए जाने चाहिए उन्होंने यह भी कहा कि श्रीमद् भागवत का अर्थ फिर सिर्फ श्रीमद् भागवत होता है इसमें नाच गाना बजाना नहीं होना चाहिए मूल पाठ हो मूल कथा हो युवा आचार्य महेश चंद जोशी का भी कहना है कि पितृपक्ष का अर्थ ही पितरों के निमित्त कार्यों का किया जाना है पितृपक्ष में अन्य कार्य नहीं किए जाने चाहिए लेकिन अब कुछ लोग अगर कर रहे हैं तो उस पर वह कोई टिप्पणी भी नहीं करेंगे प्रख्यात ज्योतिष आचार्य डॉक्टर मंजू जोशी का कहना है कि पितृपक्ष केवल पितरों के लिए समर्पित होता है इस दौरान देव कार्य वर्जित माने जाते हैं कुछ लोग इस दौरान भी बड़े धार्मिक अनुष्ठान कथा पुराण इत्यादि करते हैं जो समझ से परे है आखिर हमारी सनातन संस्कृति कहां जा रही है

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