क्या महिलाएं कर सकती हैं पुरोहित का कार्य, जानिए कथा मर्मज्ञ डॉक्टर मुकेश भारद्वाज की राय
एक पिता की सब संतान नर और नारी एक समान यह नारा 21वीं सदी उज्जवल भविष्य को रेखांकित करते हुए शांतिकुंज हरिद्वार द्वारा दिया गया इस नारे का मकसद था कि समाज में महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर समान अधिकार दिया जाए हालांकि महिला को पुरुष के बराबर समानता का अधिकार देने की बात सिर्फ शांतिकुंज हरिद्वार की ही नहीं है अनेक धार्मिक सामाजिक संगठन महिलाओं को हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर अधिकार दिए जाने की बात करते रहे हैं लेकिन कुछ जगह पर बहस छिड़ जाती है ऐसा ही मामला जनपद नैनीताल के क्षेत्र में देखने को मिला जहां महिलाओं द्वारा एक विवाह संस्कार संपन्न कराया गया यानी कि पुरोहित का कार्य महिलाओं ने कराया गायत्री शक्तिपीठ ने इसे अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि बताया वहीं इसको लेकर के बहस हुई कुछ इसको पूरी तरह शास्त्र के विरुद्ध बताते हैं तो कुछ कुछ भी कहने से इनकार कर दे रहे हैं कुछ किंतु परंतु के बीच समर्थन भी किया है हमने इस संदर्भ में वृंदावन धाम से आए हुए श्री राम कथा के मर्मज्ञ डॉक्टर मुकेश भारद्वाज प्रभु जी से बात की तो उनका कहना था कि महिलाएं किसी भी तरह से पुरोहित का कार्य करने के लिए नहीं है इस बात को और अधिक मजबूती के साथ रखते हुए कहते हैं कि कायदे तन पुरोहित का कार्य कोई जनेऊधारी ही कर सकता है यदि कोई पुरुष जनेऊधारी नहीं है तो उसे भी विवाह संस्कार करने का अधिकार नहीं है ऐसे में महिलाएं जो जनेऊधारी नहीं होती है उनके द्वारा विवाह संस्कार कराया जाना धर्म विरुद्ध है और यह हमारी सनातन संस्कृति एवं धर्म के विरुद्ध किया जाने वाला कार्य है इस परंपरा का किसी भी कीमत पर समर्थन नहीं करते हैं