शुभ दीपावली: उस परम प्रकाश को कैसे जाने जो स्वयं प्रकाशित है: महात्मा सत्यबोधानंद

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5 दिन तक मनाया जाने वाला दीपोत्सव जिसे पंचोत्सव भी कहते हैं जिसका तात्पर्य दीपावली से है , पूरे विश्व में जहां सनातन धर्म को मानने वाले लोग हैं वहां दीपावली का पर्व बेहद उल्लास और उमंग के साथ मनाया जाता है दीपावली के पर्व के आने से पूर्व ही हर ओर खुशियों का माहौल दिखाई देने लगता है घर, दुकान ,प्रतिष्ठान, कार्यालय में साफ-सफाई ,रंगाई पुताई एवं सौंदर्य प्रदान करने का क्रम शुरू हो जाता है दीपावली सनातन धर्म का प्रमुख त्यौहार है जो त्रेता युग में भगवान श्री राम की गाथा से जुड़ा है लंका पर विजय प्राप्त करने के पश्चात मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम वापस जब अयोध्या लौटे तो आगमन की खुशी में जगह-जगह रास्ते में रोशनी कर दीप जलाए गए तभी से इस महान परंपरा को दीपावली पर्व के रूप में मनाया जाता है वास्तव में देखा जाए तो दीपावली का एक विशेष आध्यात्मिक महत्व भी है किसी कवि की कालजयी रचना में कहा गया है( जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए) अर्थात ज्ञान का आलोक जन-जन तक पहुंचाना है ज्ञान के इस आलोक से कोई भी वंचित न रह पाए दीपावली के पावन पर्व पर हमें इसके आध्यात्मिक धार्मिक महत्व से इस बात का भी आशय निकालना चाहिए कि हम बाहरी जगत में तो प्रकाश फैला रहे हैं लेकिन क्या हम उस वास्तविक प्रकाश को भी जानते हैं परमपिता का जो परम प्रकाश हर किसी के अंदर है जिसे रोशन करने के लिए घी तेल बाती दीपक इत्यादि की आवश्यकता नहीं होती है प्रत्येक प्राणी के अंततःकरण में व्याप्त उस प्रकाश के संदर्भ में मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं – (राम भगति चिंतामणि सुंदर, बसई गरुड़ जाके उर अंतर, परम प्रकाश रूप दिन राती, नहीं कछु चहिए दिआ घृत बाती) स्वयं योगेश्वर भगवान श्री कृष्णा श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से अर्जुन को समझाते हैं कि (न तदभाषयते सूर्यो न शशांको न पावक: यदगत्वा न निवर्तन्ते तदधामम परम ममः)
ऐसा प्रकाश जिसे ना सूर्य की आवश्यकता होती ना चंद्रमा की और ना अग्नि की बल्कि वह उस मणि के समान है जो स्वयं प्रकाशित होता है जिससे हम ब्रह्म ज्योति कहते हैं इसी बात को आगे समझाते हुए महात्मा कबीर कहते हैं कि (हम वासी वा देश के जहां आदि अंत का खेल, दीपक देखा गैब का बिन बाती बिन तेल)
आगे संत ब्रह्मानंद जी कहते हैं कि ( बिन भूमि का महल बना है तामे ज्योत उजारी रे, अंधा देख देख सुख पावे बात बतावे सारी रे)
इसी बात की पुष्टि करते हुए गुरु नानक देव जी गुरु वाणी में कहते हैं कि ( जे सउ चंदा उगवहि सूरज चड़हि हजार,एते चानण होदिआं गुरु बिन घोर अंधार)
अर्थात जिसे साधक साधना में अनुभूति करता है और फिर वह जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है ऐसा परम प्रकाश हम सब के अंदर है उसका दर्शन करने के लिए समय के तत्वदर्शी ज्ञानी के सानिध्य में जाना होता है क्योंकि वह परम प्रकाश ईश्वर का ही रूप है ईश्वर को सच्चिदानंद कहा गया है अर्थात सत् चित् और आनंद का सम्मिलित स्वरूप ही परमात्मा है आखिर वह परम प्रकाश क्या है वह ब्रह्म ज्योति क्या है जिस से संपूर्ण चराचर जगत प्रकाशमान है और वह ब्रह्म ज्योति अर्थात प्रकाश हर प्राणी के घट के अंदर व्याप्त है उसे देखने के लिए समय के सद्गुरु की शरण में जाना होगा तो आइए हम अपने अंदर व्याप्त उस परम प्रकाश को जाने और ज्ञान के आलोक को जन जन तक पहुंचाने का कार्य करें दीपावली पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं( सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया सर्वे भद्राणि पश्यंतु मां कश्चित दु:ख भाग्भवेत )
लेखक : मानव उत्थान सेवा समिति के राष्ट्रीय संगठन सचिव है जिनका केंद्रीय कार्यालय पूर्वी पंजाबी बाग नई दिल्ली है

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