यहां है उत्तराखंड का एकमात्र तुलसी माता मंदिर

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तुलसी का पौधा अत्यंत महत्व का प्रतीक है इसका धार्मिक एवं आध्यात्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टि से भी काफी महत्व है तुलसी के पौधे की महिमा से जहां पद्म पुराण स्कंद पुराण भविष्य पुराण गरुड़ पुराण एवं ब्रह्मावैवर्त पुराण भरे पड़े हैं वही तुलसी का पौधा नेचुरल एयर प्यूरीफायर भी माना जाता है जो औसतन प्रतिदिन 12 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है यह पर्यावरण को शुद्ध रखता है तथा वायरल इंफेक्शन से भी बचाता है

तुलसी का उपयोग स्वास्थ्य की दृष्टि से बुखार खांसी पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए भी किया जाता है इसका सेवन इम्युनिटी पावर को भी बढ़ाता है अत्यंत धर्म एवं आध्यात्म के महत्व के प्रतीक तुलसी का पौधा सनातन धर्म में नित्य पूजा जाता है इसे योगेश्वर भगवान श्री कृष्णा की प्रसन्नता के लिए भी प्रत्येक घरों में गमलों में लगाया जाता है तुलसी के पौधे प्राय हर जगह देखे जा सकते हैं लेकिन उत्तराखंड में जनपद नैनीताल में एक ऐसी जगह भी है जहां तुलसी माता का मंदिर है इस मंदिर की विशेषता है कि इसकी नित्य परिक्रमा करने से मनुष्य के तमाम प्रकार की व्याधियों का हरण हो जाता है नवधा भक्ति से जब माता तुलसी की पूजा की जाती है तो उनकी कृपा अपने भक्तों पर अनायास बरसती है स्कंद पुराण में तुलसी माता की महिमा को इस प्रकार बताया गया है कि मैं तुलसी माता को प्रणाम करता हूं क्योंकि यह सब पाप कर्मों के समूह को तुरंत नष्ट कर देने वाली है तुलसी माता के स्पर्श दर्शन मात्र से ही मनुष्य सारे क्लेश एवं रोग से मुक्त हो जाता है तुलसी पर नित्य जल चढ़ाने वाले भक्त को यम का भय भी नहीं रहता है अर्थात वह यम के भय से भी अभय हो जाता है तुलसी की पूजा करने वाले भक्ति पर योगेश्वर भगवान कृष्ण की भी कृपा सदैव बनी रहती है स्कंद पुराण के ही अनुसार तुलसी सभी प्रकार से कल्याणमय है इसके स्पर्श दर्शन वंदन पूजन अथवा लगाने से ही सदैव कल्याण होता है और व्यक्ति को योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण के परम धाम की प्राप्ति होती है जी हां अब बात करते हैं उत्तराखंड में ऐसा अद्भुत दिव्य गुणों से भरपूर तुलसी माता का मंदिर कहां है तो आपको बताते हैं कि उत्तराखंड के जनपद नैनीताल के विकासखंड हल्द्वानी में हल्दूचौड़ के परमा नामक गांव में श्रील नित्यानंद प्रभुपाद आश्रम में ही तुलसी माता का भव्य मंदिर बनाया गया है जहां का वातावरण अत्यंत सुकून प्रदान करता है एक ऐसी अनुभूति मिलती है कि यहां आकर बस यही आने को बार-बार जी चाहता है और भक्त बड़े प्रेम भाव से कहते हैं वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी पुष्पसारा नंदिनी च तुलसी कृष्ण जीवनी
प्रेम से बोलिए हरे कृष्णा

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