स्वस्थ रहने के लिए कितना खाना चाहिए, युग ऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का आलेख

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🥀// २५ मार्च २०२५ मंगलवार //🥀
💐चैत्र कृष्णपक्ष एकादशी २०८१💐
👉➖पापमोचनी एकादशी➖👈
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‼ऋषि चिंतन‼
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❗भोजन कितना करना चाहिए ❗
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👉 हमें कितना भोजन करना चाहिए? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि “भूख” से “कम” खाया जाय। हर एक शरीर की आवश्यकता और पाचन शक्ति की मर्यादा भिन्न भिन्न है । सबके लिए एक परिमाण निश्चित नहीं किया जा सकता । इसका निश्चय तो खाने वाले का पेट ही कर सकता है । पेट बता देता है कि शरीर की आवश्यकता और पचाने की शक्ति कितनी है ? शरीर जितना वह मांगे उतना ही देना चाहिए। पेट को आधा भोजन से भरना चाहिए, चौथाई जल के लिए और चौथाई हवा के लिए खाली रहने देना चाहिए, ऐसा शास्त्रकारों का मत है। आधे चौथाई का नापतोल तो कठिन है, पर इतना ध्यान रखना चाहिए कि भूख से कम खाया जाय, पेट में कुछ जगह रहने दी जाय। इतना आहार न लेना चाहिए कि खाने के बाद चलना-फिरना या काम करना कठिन मालूम हो। भोजन के बाद स्फूर्ति आनी चाहिए। काम करने को अधिक तबियत करनी चाहिए। पर यदि आलस्य आये, भारीपन मालूम पड़े तो उसे भोजन की अधिक मात्रा का कारण समझना चाहिए। कुछ कम भोजन किया जाये, तो कुछ हर्ज नहीं, बल्कि लाभ है, क्योंकि पेट आसानी से उस काम को पूरा कर लेता है, पूरा रक्त बन जाता है। यदि अधिक भोजन हो, तो उस भार को टालने में पेट को भारी मेहनत पड़ती है। इतना पचाने के लिए पर्याप्त पित्त नहीं होता इसलिए कच्ची हालत में ही मल होकर निकल जाता है। भोजन की मात्रा में यह बात याद रखने की है कि भूख से पेट की माँग से कुछ कम ही खाना चाहिए, अधिक कदापि नहीं।
👉 रात्रि का भोजन सोने से कम से कम दो-तीन घंटे पूर्व हो जाना चाहिए। खाने के बाद तुरंत सो जाने से अन्न पेट में बिना पचा पड़ा रहता है, इससे नींद में बाधा पड़ती है और ठीक समय पर पचने से जो लाभ मिलना चाहिए वह नहीं मिलता।
👉 क्या खाया जाय, ?कब खाया जाय, ? कैसे खाया जाय, ? कितना खाया जाय, ? इन चार बातों पर समुचित ध्यान देने और नियमानुसार आचरण करने से पेट की संपूर्ण शिकायतें दूर हो जाती हैं, कब्ज नहीं रहता, पाचन अंग ठीक हो जाते हैं, फलस्वरूप पेट में फैली हुई निर्बलता और अस्वस्थता की जड़ें कट जाती हैं एवं जीवन में एक भारी संकट से छुटकारा मिल जाता है।
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बिना औषधियों के कायाकल्प पृष्ठ-२२
🪴पं. श्रीराम शर्मा आचार्य 🪴
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