जानिए कौन थे शक्ति के प्रथम उपासक, कब सेशुरू हुआ नवरात्रि पूजन

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पुराणों के अनुसार शक्ति रूपी मां दुर्गा अथवा आदि शक्ति और महिषासुर के बीच 9 दिन का भयंकर और दुर्गम युद्ध हुआ। इसीलिए इनका नाम दुर्गा पड़ा। 9वे दिन देवी ने राक्षस राज महिषासुर का वध कर दिया। इन्हीं 9 दोनों को नवरात्र के रूप में मनाया जाता है ।आज के युग में नवरात्र का विशेष महत्व है ,क्योंकि नवरात्रि व्रत का मूल उद्देश्य इंद्रियों का संयम और आध्यात्मिक शक्ति का संचयन है।


भगवान राम ही प्रथम राजा और मनुष्य थे, जिन्होंने 9 दिन की चंडी देवी की व्रत एवं पूजा कर ,रावण पर विजय प्राप्त की। तभी से यह प्रथा निरंतर चली आ रही है ।
बसंत के समय नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि वर्ष में दो बार मनाए जाते हैं। बसंत नवरात्रि नए वर्ष तथा नई फसलों, नए मौसम और जीवन दायिनी शक्ति से प्रेरित है ।उस समय हम उस शक्ति की पूजा करते हैं, जो विश्व को चला रही है। शक्ति यानि दुर्गा की पूजा नवरात्रि का पर्व प्रकृति यानि शक्ति के रक्षा है। हमारी पूजा व्रत त्यौहार सब तो पर्यावरण संरक्षण पर आधारित हैं। नवरात्र को दोनों फसल चक्र की खुशी और मनमोहन मौसम ,बृक्षो से प्राप्त प्रसाद स्वरूप फल भोजन, सुगंधित हवन सामग्री, जिसमें औषधीय पेड़ पौधों के भाग होते हैं, जो वायु को शुद्ध करते हैं, के रूप में देखा जाता है ।
शारदीय नवरात्र को काल बोधन से भी जाना जाता है ।यह असमय पूजन राम के द्वारा शक्ति के आह्वान के लिए 9 दिनों तक रावण को परास्त करने हेतु किया गया था ।
नवरात्र के प्रथम दिन घर-घर में मिट्टी के घट रूपी मां दुर्गा की स्थापना की जाती है। कलश स्थापना के समय विभिन्न पेड़ों की लड़कियों एवं पत्तियों को रखा जाता है। कलश को जीवन दायिनी जल से भरा जाता है । घट को धूप ,अक्षत आदि से पूजन के पश्चात, आम के पत्ते के ऊपर सृष्टि के प्रथम भ्रूण के रूप में ,कल्पवृक्ष रूपी नारियल से प्राप्त श्रीफल को रखा जाता है, जो कि अंकुरण मिट्टी जलवायु जैसे मूल तत्वों के सहयोग की ओर इंगित करता है। तथा प्रकृति के पारितंत्र में जैव और अजैव कारकों की महत्ता को चिन्हित करता है ।
दूसरे दिन ,बन देवी जो, ब्रह्मचारिणी है, उसके उपरांत तीसरे दिन, चंद्रघंटा जो चंद्रमा, समुद्र, जल तंत्र एवं ब्रह्मांड सृजन की प्रतीक है, उसके उपरांत कुष्मांडा देवी, सूर्य ऊर्जा का प्रतीक है। तदुप्रांत स्कंदमाता पहाड़ों में रहकर सांसारिक जीवन में नवचेतना का निर्माण करने वाली है। यह दृढ़ता का प्रतीक भी है ।मां कात्यायनी , संयुक्त संयुक्त ऊर्जा का प्रतीक है ।जो बीमारी, बाढ़, प्रकृति आपदा का सामना करने में सक्षम है ।दुर्गा, का खेती और किसानों से गहरा नाता है। नौ तरह की पत्तियों की पूजा सातवें दिन होती है ।हमारे पूर्वजों ने पेड़ों को देवी स्वरूप माना है विल्व ,अनार ,अशोक, जौ और धान इनमे विशेष है ।
अतः नवरात्रि का समय मौसम सुंदर रहता है । व्रत,पूजा,हवन आदि के द्वारा हम अपने अंतर शुद्धिकरण करते हैं ,और हम प्रकृति की रक्षा के लिए भी संकल्प लेते हैं।
लेखक परिचय जीवन चंद्र उप्रेती पूर्व अपर सचिव लोकायुक्त हैं तथा भारत की लोक जिम्मेदार पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री एवं पर्वतीय महासभा के केंद्रीय अध्यक्ष हैं एवं फाइनल कॉल समाचार पत्र के उत्तर प्रदेश प्रभारी है

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