महातीर्थ :साक्षात एवं जागृत रूप में भक्तों पर कृपा बरसाती है मां धारी

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नवरात्रि पर्व पर विशेष
मां धारी करती है भक्तों का कल्याण
लेखक-अखिलेश चन्द्र चमोला, श्रीनगर गढ़वाल।
आदिशक्ति जगत जननी माता जगदंबा का विराट स्वरूप श्रीनगर से मात्र 13 किलोमीटर दूर अलकनंदा नदी की तट पर मां धारी देवी का मंदिर है ।जिसे शास्त्रों में मां शमशान काली, महाकाली ,दक्षिण काली ,आदि नामों से जाना जाता है बद्रीनाथ, केदारनाथ धाम की यात्रा करने से पहले यात्री मां धारी देवी का आशीर्वाद लेकर अपनी यात्रा की शुरुआत करते हैं। यहां पर पाठकों की जिज्ञासा और जानकारी के लिए मां धारी देवी की तीनों नाम की अर्थ को स्पष्ट कर रहा हूं।
श्मशान काली-मां धारी देवी को शमशान काली भी कहा जाता है विद्वानो का मत है की मां श्मशान में निवास करती है।शंशब्द से शवऔरशान शब्द से शयन कहा जाता है।इस प्रकार जहां शव शयन करें उस स्थान को मुनिजन और विद्वान श्मशान कहते हैं । जहां पृथ्वी,जल, तेज,वायु,आकाश,का लय होता है और शव मुर्दा रुप हो जाय वह श्मशान होता है।
भक्त अपने हृदय में मां भगवती के निवास की इच्छा करता है तो उसे अपने हृदय को राग द्वेष आदि संपूर्ण विकारों से रहित बना देना चाहिए। मां भगवती की असीम कृपा प्राप्त करने के लिए संपूर्ण बुराइयों को श्मशान बनाना पड़ता है। अर्थात समाप्त करना पड़ता है तब जा करके की मां भगवती अपनी कृपा बरसाती है।
दक्षिण काली -किस प्रकार कर्म की समाप्ति पर दक्षिणा फल की सिद्धि देने वाली होती है ।उसी प्रकार मां भगवती भी सभी फलों की सिद्धि देती है। मां काली सामान्य उच्चारण करने मात्र से मुंह मांगा वर देती है। इसलिए मां को दक्षिण काली कहा जाता है। दक्षिण मूर्ति भैरव ने सर्वप्रथम मां काली की पूजा की थी ,इसी कारण मां भगवती का नाम दक्षिण काली भी है।
महाकाली एकमात्र मां काली ही इस तरह की शक्ति स्वरूपा है जिसने महाकाल पर विजय प्राप्त की है। मां काली की शक्ति से मृत्यु पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है।
मन हरि के संदर्भ में इस तरह की मान्यता है की मां प्रातः दो पहर , सायं तीनों पहर में भक्तों को अपना अलग-अलग रूप दिखाती है प्रातः काल के समय बाल्य, सौम्य रूप दोपहर में उग्र प्रचंड काली रूप सायं के समय वृद्धा रूप में अवतरित होती। है।
मां धारी देवी की चौखट पर जो भी सच्ची श्रद्धा से आता है मां उसके संपूर्ण मनोरथ पूर्ण करती है ।सच्चे भक्ति भाव से मां की प्रतिमा के आगे ध्यान लगाने से शक्ति की किरणो का प्रकटीकारण होना शुरू हो जाता है ।भक्त अपने आप में खो जाता है ।शरीर में रोमांच उत्पन्न होने लगता है ।इस तरह का बोध होता है कि हमारे आसपास अलौकिक किरणों का संचार हो रहा है ।यह अनुभूति शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं की जा सकती है।
मां के मन्दिर की विशेषता है कि मां के ऊपर छत नहीं रहती है।वह खुले आसमान के नीचे रहना चाहती हो। आज भी कोई भक्त मां धारी की प्रतिमा को अपने घर में रखना चाहता है तो रख नहीं पाता है, उच्चाटन की स्थिति आ जाती है।
मान्यता है कि इस क्षेत्र पर जब भी कोई संकट आता है, मां धारी देवी आवाज लगा कर सचेत कर देती है। मन्दिर के पास ही एक शिव का मन्दिर भी है। जहां शिव शक्ति कै रुप में पूजन किया जाता है।
मां धारी देवी सदियों से उत्तराखंड देवभूमि की रक्षा करती रही है।इसका इतिहास अपने आप में बहुत पुराना है।1807से मां धारी देवी के स्थित होने के साक्ष्य मौजूद हैं ।1803से 1814तक गोरखा सेनापतियो के द
द्वारा मन्दिर को दिया गया दान तथा ताम्र पात्र अभी भी प्रमाणिकता को स्पष्ट करते हैं। मान्यता यह भी है कि द्वापर युग है ही मां काली की प्रतिमा यहां स्थित है। यहां मां काली के धार की पूजा की जाती है।शरीर पूजा काली मठ में की जाती है। मां धारी देवी जाग्रत और साक्षात रूप में अपने भक्तों पर कृपा बनाए रखती है।
हमारे देवभूमि की अनूठी विशेषता है कि यहां पर हर त्योहार मे मां शक्ति की पूजा अवश्य की जाती है। मां शक्ति को कुल देवी के नाम जाना जाता है। विवाह,मुन्डन,या किसी भी पर्व पर यदि मां का प्रकटीकरण नहीं हुआ तो परिवार के सारे सदस्य असहज महसूस करते हैं। मां शक्ति का प्रकटीकरण होने से परिवार में खुशहाली की स्थिति आ जाती है मां धारी देवी धियाण यानि बहिन पर विशेष कृपा बनी रहती है। यदि धियाण किसी बात पर खुश नहीं हैं तो मां शक्ति का दोष लग जाता है।धियाण को खुश रखने पर मां शक्ति मुंह बोला वर प्रदान कर देती है।इसी कारण यहां धियाण के सम्मान में किसी तरह की कमी नहीं की जाती है।
मां अपने भक्तों का मार्गदर्शन करतीं रहती है। मां का उच्चारण करने मात्र से सम्पूर्ण कुल का उद्धार हो जाता है।
/लेखक, मां काली उपासक के साथ, स्वर्ण पदक प्राप्त, जिलाधिकारी रजत प्लेट से सम्मानित होने के साथ ही महामहिम राज्यपाल पुरस्कार से भी अलंकृत है।/