पूर्व अपर सचिव की राय राज्य में लागू हो सशक्त भू कानून
भूमि बंदोबस्त प्रकरण उत्तराखंड
अखिल भारतीय पर्वतीय महासभा एवम् उत्तराखंड के मूल निवासियों तथा क्षेत्रीय संगठनों के अकथ प्रयास से उत्तराखंड प्रांत का सृजन वर्ष 2000 में हुआ। राज्य बनने के बाद अब तक भूमि के जुड़े कानून में जो भूमिक्रय हेतु आसान बदलाव किया वह जनहित में नहीं देखे जा सकते हैं ।हिमालय के राज्यों में मात्र उत्तराखंड राज्य ऐसा राज्य है, जिसमें सशक्त भू कानून न होने से बाहर के लोग बड़े पैमाने पर जमीन खरीद रहे हैं ।और राज्य संसाधनों पर बाहरी लोग हावी हो रहे हैं जिससे यहां के मूल निवासियों में असंतोष होना स्वाभाविक है, क्योंकि वह भूमिधर दिन प्रतिदिन अब भूमिहीन हो रहे हैं। जिसका असर उत्तराखंड राज्य की संस्कृति ,परिवार ,अस्मिता और पहचान पर पढ़ रहा है ।
पड़ोसी राज्य हिमाचल एवम् अन्य राज्यों में
भूमि क्रय के सशक्त नियम है। हिमालय जैसे पड़ोसी देश में कृषि भूमि के गैर कृषि उद्देश्यों के लिए खरीद बिक्री पर रोक है।
उत्तराखंड राज्य की कुल भूमिका का लगभग 64% बन और बंजर भूमि है ,जबकि कृषि योग्य मात्र 14% है ।
आजादी के बाद एकमात्र भूमि बंदोबस्त वर्ष 1960 से 1964 के बीच हुआ। आजादी के बाद उत्तर प्रदेश में यू पी जमीदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम 1950 आया। कुमाऊं और उत्तराखंड जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम 1960 में राज्य में भूमि बंदोबस्त हुआ ।
वर्ष 2003 में राज्य का अपना भूमि कानून अस्तित्व में आया, इस संशोधन में बाहरी लोगों को 500 वर्ग मीटर कृषि भूमि खरीद की सहमति थी। वर्ष 2008 में संशोधन कर 250 वर्ग मीटर किया गया। 2018 में भा जा पा के श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री काल में जमीदारी एंड लैंड रिवेन्यू एक्ट में संशोधन कर उद्योग स्थापित करने हेतु पहाड़ में जमीन खरीदने की अधिकतम सीमा और किसान होने की बाध्यता खत्म कर दी गई, साथ ही कृषि भूमि का उपयोग बदलना आसान कर दिया। लेकिन आज तक उद्योगों का विकास नहीं हो सका है ।
2018 मैं संशोधन व्यवस्था के अनुसार खरीदी गई भूमिका इस्तेमाल निश्चित उद्देश्य पर न होने की स्थिति में वह राज्य में निहित होने का उल्लेख है। लेकिन धामी सरकार ने सिंगल विंडो एक्ट लागू करते हुए कृषि भूमि को गैर कानून कृषि घोषित होने पर उसे राज्य सरकार में निहित नहीं की जा सकती कह कर कानून में ढील दी और साथ ही भू सुधार के लिए एक समिति भी गठित की, समिति ने वर्ष 2022 में अपनी रिपोर्ट सौंप दी ,जिसमें शक्त भू कानून लाने के लिए सुझाव दिए गए, लेकिन अभी तक कोई बदलाव नहीं हुआ
उपरोक्त कारण से उत्तराखंड के मूल निवासियों में असंतोष की आवाज उठाना स्वाभाविक और उचित है।
पर्वतीय महासभा भी इसका समर्थन करती है।
जीवन चंद्र उप्रेती पूर्व अपर सचिव लोकायुक्त उत्तराखंड