पढ़िए आज का ऋषि चिंतन
🥀 १९ फरवरी २०२५ बुधवार 🥀
//फाल्गुन कृष्णपक्ष सप्तमी २०८१//
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‼ऋषि चिंतन‼
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भक्त के वश में हैं भगवान
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👉 “भगवान” भक्तों के वश में होते हैं। भक्त जैसे चाहते हैं, उन्हें नचाते हैं। भक्त जिस रूप में उनके दर्शन करना चाहते हैं, उसी रूप में प्रकट होते हैं और उनसे जो याचना या कामना करते हैं, उसे पूरा करते हैं। भगवान की कृपा से भक्तों को बड़े-बड़े लाभ होते हैं, परंतु यह भी स्मरण रखने की बात है कि वे “केवल भक्तों” को ही लाभ पहुँचाते हैं। जिनमें भक्ति नहीं है उनको भगवान से कुछ भी लाभ प्राप्त नहीं हो सकता। अनेक देवी-देवता भगवान के ही रूप हैं। जिस देवता के रूप में भगवान का भजन किया जाता है, उसी रूप में वैसे ही फल उपस्थित करते हुए भगवान प्रकट होते हैं।
👉 “भगवान” की कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं है। आत्मा के सशक्त क्रिया रूप को “भगवान” कहते हैं। आत्मा अनंत शक्तियों का पुंज है। जिस शक्ति को प्रदीप्त, प्रचंड एवं प्रस्फुटित बनाया जाए, वह शक्ति एक बलवान देवता के रूप में प्रकट होती और कार्य करती है। किसी पक्के गुंबजदार मकान में आवाज करने से मकान गूंज उठता है। आवाज की प्रतिध्वनि चारों ओर बोलने लगती है। रबड़ की गेंद को किसी दीवार पर फेंककर मारा जाए तो जितने जोर से उसे फेंका था, टक्कर खाने के बाद वह उतने ही जोर से लौट आती है। इसी प्रकार अंतरंग शक्तियों का विश्वास के आधार पर जब एकीकरण किया जाता है तो उससे आश्चर्यजनक परिणाम उत्पन्न होते हैं।
👉 सूर्य की किरणों को आतिशी शीशे के द्वारा एक केंद्र बिंदु पर एकत्रित किया जाए तो इतनी गर्मी उत्पन्न हो जाती है कि उस केंद्र में अग्नि जलने लगती है। मानसिक शक्तियों को किसी इष्टदेव को केंद्र मानकर यदि एकत्रित किया जाए तो सूक्ष्म सजीव चेतना उत्पन्न हो जाती है। यह श्रद्धा निर्मित सजीव चेतना ही “भगवान” है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामायण में- “भवानीशंकरौ वंदे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ” श्लोक में यही भाव प्रकट किया है। उन्होंने “भवानी” तथा “शंकर” को “श्रद्धा-विश्वास” रूपी बताया है। “श्रद्धा” साक्षात् “भवानी” है और “विश्वास” साक्षात् “शंकर” है। विश्वास मनुष्य को मृत्यु के मुख से बचा सकता है और जीवित मनुष्य को क्षण भर में रोगी बनाकर मृत्यु के मुख में ढकेल सकता है। “शंका डायना मनसा भूत” कहावत किसी बड़े अनुभवी ने प्रचलित की है। चित्त में उत्पन्न हुई शंका डाइन बन जाती है और मन का भय भूत का रूप धारण करके सामने आ खड़ा होता है। रस्सी को साँप, झाड़ी को भूत, कड़वे पानी को जहर बना देने की और मृत्यु का खतरा उत्पन्न करने की शक्ति विश्वास में मौजूद है। केवल घातक ही नहीं, निर्माणात्मक शक्ति भी उसमें है। कहते हैं- “मानो तो देव नहीं तो पत्थर तो है ही” -पत्थर को देव बना देने वाला विश्वास है। विश्वास की शक्ति अपार है। शास्त्र कहता है- “विश्वासो फलदायकः ।”
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अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार पृष्ठ-१७
🪴पं. श्रीराम शर्मा आचार्य 🪴
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