ऋषि चिंतन : वेदमूर्ति पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का आलेख निरोगी रहने के नियम

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🌴।।२८ जून २०२५ शनिवार।।🌴
//आषाढ़शुक्लपक्षतृतीया २०८२ //
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‼️ऋषि चिंतन ‼️
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❗आरोग्य प्राप्ति के कुछ नियम❗
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👉 कड़ी भूख लगने पर ही खाया जाए। जब तक पेट की तीव्र मांग न हो तब तक मुँह में कुछ भी न डाला जाए। जब खाना हो तब आधा पेट आहार से भरा जाए। चौथाई पानी के लिए और चौथाई हवा के लिए खाली रखा जाए। ठूंस ठूंस कर इतना न खाया जाए कि आलस्य आने लगे और काम करना कठिन हो जाए। मुख के ग्रास को इतना चबाया जाए कि वह पतला होकर सहज ही गले से नीचे उतर जाए। दिन में दो बार खाना पर्याप्त है। बीच-बीच में बकरी की तरह कुछ-कुछ खाते रहने का स्वभाव न बनाया जाए। प्रातः जलपान में भारी चीजें न ली जाएँ। दूध, छाछ, फलों का रस, शाक का सूप जैसे पतले पदार्थ ही जलपान के लिए पर्याप्त समझे जाएँ। तीसरे प्रहर आवश्यकता पड़े तो ऐसे ही तरल पदार्थ लिए जा सकते हैं।
👉 खाद्य पदार्थों को न्यूनतम अग्नि संस्कारित किया जाए। तेल, घी में तलने-भूनने की रीति अपनाकर उनका जीवन तत्व समाप्त न किया जाए। सब्जियों को उबाल लेना पर्याप्त है। जहाँ तक हो सके अन्न, फल, शाक छिलके समेत ही लिए जाएँ। छिलके वाले भाग में आहार का अधिक महत्वपूर्ण तत्व रहता है। दालें साबुत ही पकाई जाएं। तेज आग पर पकाने से खाद्य पदार्थों के जीवन तत्व जल जाते हैं. इसलिए उन्हें मंदी आग पर पकाया जाए। अच्छा तो भाप से पकाना है। इसके लिए स्टीम कुकर का उपयोग किया जा सके तो उत्तम है। मौसमी फल, कच्चे शाकों का सलाद, कच्चे अन्न, अंकुरित धान्य, दूध, दही जैसे सात्विक पौष्टिक पदार्थ ही उपयोग में लाए जाएँ। मिष्ठान्न, पकवान, गरिष्ठ, अधिक चिकनाई एवं मसाले पड़े भोजन से बचा जाए। आचार, चटनी जैसे उत्तेजक पदार्थों से बचा जाए। थाली में अधिक संख्या में वस्तुएँ न रहें। उनकी संख्या जितनी कम रहे उतनी ही पाचन में सुविधा रहेगी।
👉 “शारीरिक श्रम” इतना किया जाए जिससे थक कर गहरी निद्रा का आनंद लिया जा सके। शरीर से कम और मस्तिष्क से अधिक काम लेने वाले अक्सर बीमार पड़ते हैं। पशु-पक्षी सारे दिन आहार की तलाश में दिन भर भागते-दौड़ते, उड़ते-उछलते रहते हैं, इसलिए उनके शरीर निरोग एवं बलिष्ठ बने रहते हैं। हमारी दिनचर्या में भी शारीरिक श्रम के लिए समुचित स्थान होना चाहिए। व्यायाम में स्वास्थ्य संवर्धन साधना का मनोयोग जुड़ा रहता है इसलिए उससे दुहरा लाभ है। शरीर की स्थिति के अनुरूप हलके-भारी थोड़े बहुत व्यायाम का क्रम भी दिनचर्या में जोड़कर रखा जाए। घर के काम-काज में हाथ बंटाना, टूट-फूट की मरम्मत, सफाई, घरेलू शाक-वाटिका, गृह-उद्योग, चक्की पीसना जैसे कामों में परिवार के सभी लोग भाग लेते रहें तो शारीरिक श्रम के अतिरिक्त सुव्यवस्था, आर्थिक लाभ भी मिलेगा और सुरुचि सुसज्जा का वातावरण दृष्टिगोचर होगा। रुग्ण-दुर्बल व्यक्ति भी चारपाई पर पड़े-पड़े अंग संचालन व्यायाम करते रह सकते हैं। मालिश से भी इस प्रयोजन की पूर्ति होती है। श्रम शारीरिक स्थिति के अनुरूप हो। लोभ या दबाव से वह इतना अधिक न हो जाए कि अत्यधिक शक्ति नष्ट होने से थकान चढ़ी रहे और जीवन संकट उत्पन्न होने लगे। “श्रम” और “विश्राम” का संतुलन मिलाकर चला जाए तब ही बात बनती है।
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सात्विक जीवनचर्या और दीर्घायुष्य पृष्ठ ०५
🍁पं श्रीराम शर्मा आचार्य🍁
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