ऋषि चिंतन: युग ऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के प्रेरणादाई विचार

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🌴।।०५ जून २०२५ गुरुवार ।।🌴
🍁 ज्येष्ठ शुक्लपक्ष दशमी २०८२🍁
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‼️ऋषि चिंतन ‼️
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अनीति से उपार्जित धन दुःख का हेतु है
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👉 सही मार्ग पर चलते हुए बचाई हुई विभूति “सत्कर्म” में खर्च होती है, सुख देती है, फूलती-फलती और “सत्परिणाम” उत्पन्न करती है। दिन दिन उसका विकास होता है। किन्तु “अनीति” का उपार्जन पानी के बुलबुले की तरह देखते-देखते नष्ट हो जाता है। जिनने अनीति के मार्ग पर चल कर धन कमाया उनकी वह कमाई चोरी, बीमारी, विलासिता, मुकदमा, नशा, रिश्वत, व्यभिचार आदि बुरे मार्गों में खर्च होती देखी गई है। जैसी आई थी वैसे ही चली जाती है। पश्चात्ताप, पाप और निन्दा का ऐसा उपहार अन्ततः वह छोड़ जाती है जिसे देख कर वह कुमार्गगामी व्यक्ति अपनी नासमझी पर दु:ख ही अनुभव करता रहता है।
👉 दूरदर्शिता का अभाव ही मनुष्य को “अनीति” के मार्ग पर आकर्षित करता है। तत्काल बहुत अधिक लाभ प्राप्त करने के मोह में लोग धूर्तता का अवलम्बन करते हैं। हो सकता है कि उस समय दूसरे लोग भी धूर्तता को पहिचान न सकें, धोखे में आ जायें, ठगी के शिकार बन जावें, पर ऐसा सदा तो नहीं होता रह सकता। काठ की हाँडी आखिर कब तक चढ़ेगी उसे आज नहीं तो कल नष्ट-भ्रष्ट होना पड़ेगा। इसी प्रकार आज मौज मजा करने के नाम पर देर तक काम देने वाली अपनी शक्तियों को जल्दी खर्च कर डालना आरंभ में सुख अधिक लगने पर भी अन्ततः बड़ा कष्टकर सिद्ध होता है।
👉 बेईमानी और बदमाशी का, शेखीखोरी और विलासिता का, अनीति और असत्य का मार्ग अपनाना न तो बुद्धिमानी का प्रतीक है और न दूरदर्शिता का। यह नासमझी और ओछेपन का लक्षण है। स्वार्थी आदमी अन्ततः भारी घाटे में रहते हैं। कर्त्तव्य-धर्म का पालन करके जीवन की सफलता का जो श्रेय प्राप्त किया जा सकता था वह हाथ से निकल जाता है, लोक और परलोक बिगाड़ते हैं, घृणा और निन्दा का भाजन बनना पड़ता है। वह स्वार्थपरता का प्रतिफल भी अपने काम न आकर दूसरों की मौज उड़ाने का निमित्त बनता है। मुफ्त की कमाई खाने वाले का केवल अहित ही होता है इस प्रकार स्वार्थी लोग यदि अपनी सन्तान के लिए कुछ जमा करके रख जाते हैं तो वे बच्चे उ लसे पाकर कुमार्गगामी और आलसी ही बनेंगे। विलासी व्यक्ति अपने शरीर को खोखला बनाकर कुत्ते की मौत मरते हैं। यदि वे संयम का महत्त्व समझ सके होते तो निश्चय ही उन्हें ऊँची श्रेणी का आनन्द मिलता।
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जीवन की श्रेष्ठता और उसका सदुपयोग पृष्ठ१३
🍁पं. श्रीराम शर्मा आचार्य🍁
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