ऋषि चिंतन: आखिर क्या है ईश्वरीय कृपा

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‼ऋषि चिंतन‼
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विचार सदैव आस्तिकता के ही रहें
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👉 इस संसार में पग-पग पर कठिनाइयों और संकटों का सामना मनुष्य को ही करना पड़ता है। संसार संकटों का आलय कहा गया है। बहुत कुछ साधन होने पर भी आपत्तियाँ आ ही जाती हैं। उनसे छुटकारे का कोई मार्ग नहीं दीखता। मनुष्य बहुत कुछ हाथ- पैर मारता है लेकिन संकटों से निस्तार नहीं हो पाता।
👉 ऐसी भयप्रद परिस्थितियाँ कभी-न-कभी प्रायः सभी मनुष्यों के सामने आती रहती हैं। ऐसा लगता है जैसे उसका सारा बल, सारे साधन समाप्त हो गए हैं। इस अन्धकार में कोई साथ देने वाला नहीं है, जीवन भारी हो गया है। पैर लड़खड़ाने लग गये हैं। चारों ओर अन्धेरा ही छाया हुआ है। इस प्रकार वह निराशा और भय से घिर कर असहाय हो जाता है।
लेकिन फिर धीरे-धीरे सारा ज्वार शांत होने लगता है। सभी ओर समाधान दीखने लगता है। वही साधन जिनकी शक्ति में अविश्वास होने लगा था उसी अपने बल में, जिसमें अनास्था हो गई थी, उसी जीवन में, जिसमें केवल अन्धेरा ही अन्धेरा दीख रहा था, विश्वास, श्रद्धा और प्रकाश आता दिखलाई देने लगता है। आपत्तियों और संकट के बादल छटने लगते हैं और निराश मनुष्य एक बार फिर अपने ही पैरों पर खड़ा हो जाता है। यह सब चमत्कार क्या है ?
👉 यह चमत्कार वह ईश्वरीय कृपा है जिसका उदय अपने भीतर से ही होता है। यह मनुष्य के आस्तिक भाव का लाभ है, उसी का प्रसाद है। यह लाभ उसे नहीं मिल पाता जो “नास्तिक” होता है ।
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🪴पं. श्रीराम शर्मा आचार्य 🪴
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