संतवाणी: अपने आपको जानो

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*अपने आपको जानो*
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अपने सच्चे स्वरूप का बोध को प्राप्त करना ही मानव जीवन का अध्यात्मिक सुख का मूल स्वभाव है। जिस प्रकार शीतलता जल का मूल स्वभाव है, उसी प्रकार अध्यात्मिक शान्ति को प्राप्त करना हमारा निज स्वरूप है। इन्द्रियों की चॅचलता व बहिर्मुखी के कारण ही हम अशान्त बने रहते हैं। कपड़ों में चमक साबुन से नहीं आती, साबुन तो केवल उन पर लगी गन्दगी को साफ करता है। ऐसे ही शान्ति भी कहीं बाहर से नहीं मिलेगी, वह तो हम सभी को प्राप्त ही है, बस इन्द्रियों की चॅंचलता के कारण,हम ही अपने निज स्वरूप को भूलकर अशान्त हो चुके हैं। औषधि केवल रोग निवृत्ति के लिए होती है, स्वास्थ्य के लिए नहीं, स्वास्थ्य तो उपलब्ध है। जिस प्रकार सड़क पर चलते समय हमें स्वयॅं वाहनों से अपना बचाव करना पड़ता है, उसी प्रकार कलह, क्लेश और क्रोध की स्थितियों में भी विवेकपूर्वक नाम-सुमिरण से अपना बचाव करना चाहिए। एक कुशल नाविक की भाँति तेज धार में समझदारी पूर्वक जीवन रुपी नाव को परम शान्ति और आत्मिक आनन्द ंके किनारे पर पहुँचाने के लिए प्रतिदिन ध्यान-साधना,सतसॅंग व गुरु दरबार की सेवा में प्रयत्नशील बने रहें। सेवा, सतसॅंग भजन-सुमिरण के अभ्यास से ही अध्यात्मिक शान्ति की कामयाबी हासिल होती है।तभी श्री गुरु महाराज जी भी निज स्वरूप का बोध कराने की असीम कृपा करते है!