शिष्य एवं पुत्र में जो भेद नहीं रखें वही समय का सच्चा सदगुरु : बृजेंद्र पांडे
अपनी बेबाक टिप्पणी एवं खरी खरी तथा सधी हुई बातों के लिए विख्यात मां पीतांबरी के अनन्य भक्त सत्य साधक वृजेंद्र पांडे गुरु जी ने कहा है कि समय का सच्चा सद्गुरु वही है जो शिष्य एवं पुत्र में भेद नहीं रखता है और शिष्य भी वही है जो गुरु एवं पिता में समानता का आदर भाव रखता है उन्होंने कहा कि गुरु अपने शिष्य के कल्याण के लिए उसके अंदर ज्ञान का, ऊर्जा का, अध्यात्म का बीजारोपण करता है गुरु को ब्रह्मा विष्णु तथा महेश कहा गया है अर्थात गुरु अपने शिष्य के अंदर ब्रह्मा की तरह ही आध्यात्मिक शक्तियों का सृजन करता है विष्णु की तरह उसका लालन पोषण करता है और महेश अर्थात शिव की तरह ही उसके समस्त विषय विकारों का संहार करता है उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से गुरु अपने शिष्य के कल्याण के लिए अपने आप तक को न्योछावर कर देता है तथा अपने पुत्र एवं शिष्य में कोई भेद नहीं रखता है ठीक उसी प्रकार से शिष्य का भी कर्तव्य होना चाहिए कि जब वह जीवन में गुरु को धारण कर लेता है तो फिर उसे मन मुखी नहीं गुरुमुखी होना चाहिए अर्थात गुरु की आज्ञा के अनुसार चलना चाहिए और जो आदर भाव अपने माता-पिता के प्रति रखता है वही आदर भाव अपने गुरु के प्रति भी रखना चाहिए किसी प्रकार का भी छल कपट झूठ फरेब गुरु के प्रति नहीं होना चाहिए उन्होंने कहा कि जब व्यक्ति को जीवन में गुरु का आश्रय प्राप्त हो जाता है और गुरु के प्रति उसकी निष्ठा बढ़ जाती है तो उसके अंदर गुरु बल अर्थात एक ऐसा बल आ जाता है जो उसे अनेक विषम परिस्थितियों से भी पार लगा देता है उन्होंने बताया कि विभांडक ऋषि बहुत तपस्वी थे लेकिन कामवासना से ग्रस्त होकर वह एक अप्सरा पर मोहित हो गए क्योंकि उनके अंदर तपस्या बल तो था लेकिन गुरु का बल
नहीं था जबकि अर्जुन जो स्वर्ग लोक में गंधर्व विद्या सीखने गया था स्वयं अप्सरा ने उसके आगे विवाह का प्रस्ताव रखा लेकिन अर्जुन अपने गुरु अर्थात कृष्ण की आज्ञा पर चलते थे और गुरु का बल ऐसा था कि वह अप्सरा पर बिल्कुल भी मोहित नहीं हुए उन्होंने कहा कि गुरु शिष्य की महान परंपरा जो सृष्टि के आदि से चली आ रही है उस महान परंपरा को अक्षुण्ण रखना ही गुरु शिष्य का परम धर्म होना चाहिए और जब यह परंपरा अपने गौरवशाली अतीत को सहेजते हुए आगे चलेगी तभी गुरुकुल की भी सार्थकता है और गुरु शिष्य के रिश्ते की भी सार्थकता है इसी महान परंपरा के आधार पर ही भारत को फिर से विश्व गुरु का दर्जा दिलाया जा सकता है उन्होंने कहा कि गुरु जी के सुमिरन मात्र से नाशत विघ्न अनंत, ताते सर्वांरभ में ध्यावत हैं सब संत