तत्काल फल प्रदान करती है यह देवी, इस स्थान पर है पावन दिव्य स्थल

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जनपद अल्मोड़ा के दूनागिरी क्षेत्र में वैष्णवी रूप में स्थित दूनागिरी शक्तिपीठ भक्तों की श्रद्धा और आस्था का प्रमुख केंद्र है यह ऐसा पावन दिव्य स्थल है जहां की अलौकिक छटा और नैसर्गिक सौंदर्यता अतुलनीय है यहां पहुंचकर मनुष्य को जगत जननी माता दूनागिरी की कृपा से परम शांति प्राप्त होती है और वह समस्त प्रकार के संतापों से मुक्त होकर परम आनंद को प्राप्त करता है मां दूनागिरी मंदिर की स्थापना का काल अत्यंत पुराना है इसकी महिमा का वर्णन त्रेता युग से माना जाता है

शिलालेखों पर अंकित जानकारी के मुताबिक राम रावण युद्ध के दौरान लंका में लक्ष्मण को शक्ति लगी शक्ति के आघात से लक्ष्मण मूर्छित हो गए फिर सुसैन वैध की सलाह पर पवनसुत हनुमान दिव्य बूटी की खोज में द्रोणागिरी पर्वत गए लेकिन उसे दिव्य बूटी को जब वह नहीं पहचान पाए तो पूरा द्रोणागिरी पर्वत ही उठा ले उस दौरान पर्वत से एक टुकड़ा इस स्थान पर भी गिरा जो दूनागिरी के नाम से विख्यात हुआ यहां के कण-कण अनेक प्रकार की जीवनदायनी औषधीय से भरा पड़ा है मान्यता है कि नंगे पांव यदि कोई भक्त श्रद्धा के साथ मां दूनागिरी मंदिर की परिक्रमा या क्षेत्र का भ्रमण कर ले तो फिर उसको किसी प्रकार की शारीरिक बीमारियां नहीं होती है और यदि वह किसी प्रकार के शारीरिक बीमारी से ग्रसित होगा तो उसकी बीमारी भी तत्काल दूर हो जाती है इस मंदिर का दर्शन करने के लिए जनपद अल्मोड़ा के रानीखेत से करीब 32 किलोमीटर आगे द्वाराहाट और उसके बाद 16 किलोमीटर दूर दूनागिरी जाना होता है जहां मंगलीखान नामक स्थान से तकरीबन 500 सीढ़ियां चढ़कर इस दिव्य शक्ति पीठ के दर्शन किए जा सकते हैं सीढ़ियां चढ़ते समय किसी भी प्रकार की थकान का एहसास नहीं होता क्योंकि यह संपूर्ण मार्ग घंटियों की नाद से गुंजायमान होता है श्रद्धालु देवी मां की जयकारे से पूरे माहौल को श्रद्धा से सराबोर कर देते हैं आसपास की जड़ी बूटियां से अच्छादित क्षेत्र से गुजरकर आने वाली सुगंधित पवन एक विशेष अनुभूति का एहसास कराती है इस पावन एवं दिव्यस्थल में श्रद्धालु काफी दूर-दूर से आकर शीश नवाते हैं और मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं मनोकामना पूर्ण होने के बाद फिर श्रद्धालु यहां माता की कृपा की कृतज्ञता व्यक्त करने भी आते हैं नवरात्रि के दौरान तो आस्था के पथ पर उमड़ने वाला श्रद्धा का सैलाब देखते ही बनता है और श्रद्धालु बड़े ही श्रद्धा भाव से माता की स्तुति में कहते हैं या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

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