ऋषि चिंतन: शारीरिक श्रम का महत्व समझिए

🥀// २६ मार्च २०२५ बुधवार //🥀
💐चैत्र कृष्णपक्ष द्वादशी २०८१💐
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‼ऋषि चिंतन‼
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शारीरिक श्रम का महत्त्व समझिए
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👉 मशीन को यदि बेकाम पड़ा रहने दिया जाये; तो उसके पुर्जों को जंग लग जाती है, मैल जमा हो जाता है और यदि उसे बहुत अधिक चलाया जाये, तो पुर्जे आदि घिसकर वह बहुत जल्द बेकार हो जाती है। यही बात शरीर की है। आलस्य में पड़े रहना, अमीरी की शान में मेहनत से जी चुराना, शरीर की क्रियाशीलता को नष्ट करना है। मांस, नस, नाड़ी, त्वचा आदि की कार्यशक्ति कायम रखने के लिए इनको परिश्रम का काम अवश्य देना चाहिए। “स्वस्थता” के लिए शारीरिक परिश्रम करना अत्यंत आवश्यक है, किंतु साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि वह परिश्रम इतना अधिक न हो कि शरीर की जीवनी शक्ति का खजाना खाली हो जाय। सामर्थ्य से अधिक काम करने से शरीर में उष्णता बढ़ती है और उस गर्मी से जीवन तत्त्व नष्ट हो जाते हैं, ऐसे आदमी अधिक नहीं जीते। आमदनी से जिसका खर्च अधिक होगा, उसे दिवालिया बनना पड़ेगा। मेहनत करना, हर अंग को काम देना, डट कर उत्साहपूर्वक काम करना, परंतु शक्ति की मर्यादा के अंदर काम करना यही उचित परिश्रम है और यही लाभदायक है।
👉 बहुत से लोग दिमागी परिश्रम से पैसा कमाते हैं, ऐसे लोग सोचते हैं कि शरीर को क्यों कष्ट दिया जाय, जो काम शरीर द्वारा किये जाते हैं, उनको तो नौकर द्वारा भी पूरा करा सकते हैं, यह उनकी भूल है। रोटी पचाने का काम नौकर का पेट नहीं कर सकता, जब प्यास, भूख, मल-मूत्र त्यागने की इच्छा हो, तो इन कार्यों को भी नौकर द्वारा नहीं कराया जा सकता। शरीर के अंग-प्रत्यंगों को उचित परिश्रम देकर, उन्हें क्रियाशील बनाये रहना, यह कार्य भी खुद ही करना पड़ेगा, यह नौकर से नहीं हो सकता।
👉 संसार के बड़े लोग जिनके पास बहुत अधिक कार्य भार रहता है, स्वास्थ्य की दृष्टि से कुछ न कुछ काम अवश्य करते हैं। बगीचे में पौधों के लिए मिट्टी खोदना, छोटा-मोटा बढ़ईगीरी का काम, कपड़े धोना, घर की सफाई या ऐसे ही किन्हीं अन्य कामों को दैनिक जीवन में स्थान अवश्य मिलना चाहिए। टेनिस, फुटबाल, क्रिकेट, कबड्डी या ऐसे ही कोई खेल तलाश किये जा सकते हैं। वायु सेवन के लिए नित्य कई मील टहलना जरूरी है। दंड-बैठक, डंबल, मुग्दर, आसन, प्राणायाम आदि भी अच्छे हैं। शरीर के हर एक अंग को इतना परिश्रम मिलना चाहिए कि वह अनुभव करे कि मुझसे पूरा काम लिया है। इसके बिना अंग जकड़ने लगते हैं, चर्बी बढ़ने लगती है, कब्ज, बवासीर आदि रोगों का आक्रमण होने लगता है। दिमागी काम करने वालों या अमीरों को भी शारीरिक काम की उतनी ही आवश्यकता है जितनी कि अशिक्षित और गरीबों को। उचित परिश्रम मनुष्य मात्र के लिए आवश्यक है।
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बिना औषधियों के कायाकल्प पृष्ठ-२३
🪴पं. श्रीराम शर्मा आचार्य 🪴
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