उत्तराखंड को पांचवी अनुसूची में शामिल करने की मांग सही या गलत क्या कहते हैं पूर्व अपर सचिव

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उत्तराखंड राज्य में 5th शेड्यूल के अंतर्गत उत्तराखंड राज्य को ट्राइब स्टेटस देने की मांग बहुत तेजी से बढ़ रही हैं ।और इसे होना भी चाहिए, लेकिन अनुसूचित क्षेत्र को समझाना भी आवश्यक है। अनुसूचित क्षेत्र क्या है, और अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने के क्या मापदंड है, और पांचवी अनुसूची क्या है, को भी समझना होगा। अनुसूचित क्षेत्र संविधान के अंतर्गत अनुच्छेद 244 एक के अंतर्गत ,महामहिम राष्ट्रपति को अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने का अधिकार प्राप्त है। अनुसूचित क्षेत्र संविधान के अनुसार उस क्षेत्र को परिभाषित करता है, जहां आदिवासीय आबादी केंद्रित है। केंद्र सरकार इन अनुसूचित क्षेत्र के संरक्षण में प्रत्यक्ष रुचि लेती है ,क्योंकि आदिवासी आबादी की संस्कृति और जातीयता को संरक्षित करना महत्वपूर्ण है।
पांचवी अनुसूची और छठी अनुसूचियां निर्धारित करती है कि कौन से क्षेत्र अनुसूचित क्षेत्र के वर्गीकरण के अंतर्गत आते हैं।
अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने के मानदंड राष्ट्रपति किसी क्षेत्र को अनुचित घोषित कर सकते हैं ,इसके मानदंड निम्न है —

  1. क्षेत्र की प्रकृति अविकसित।
  2. जनजाति आबादी का पूर्ण अस्तित्व ।
  3. क्षेत्र की सामान्य आबादी के बीच पर्याप्त असमानता।
  4. इसकी सघनता के संबंध में एक उचित क्षेत्र आकर।
    5 वी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले अनुसूचित क्षेत्रों में, राज्य के राज्यपाल के पास आदिवासी आबादी की सुरक्षा के लिए विशेष अधिकार और जिम्मेदारियां होती हैं। जिम्मेदारियां में राज्य सरकार के लिए विधानमंडल की कृत्य के प्रभाव को प्रतिबंधित करने के आदेश जारी करना शामिल है ।
    *छठी अनुसूची उन क्षेत्रों को कवर करती है, जो स्वसासन पर निर्भर हैं। आदिवासी समुदायों को स्वयं अपनी स्थितियों पर महत्वपूर्ण नियंत्रण दिया गया है। जिससे सामाजिक और बुनियादी ढांचे के विकास के संबंध में कानून बनाने और केंद्र सरकार से धन प्राप्त करने की स्वतंत्रता भी शामिल है ।पांचवी अनुसूची के विपरीत स्थानीय सरकार और राज्यपाल के पास सीमित नियंत्रण शक्ति और जिम्मेदारियां हैं ।छठी अनुसूची को स्वायत्त जिला परिषद के रूप में जाने वाले स्वायत्त्व जिला प्रभागों की स्थापना और संचालन करके स्वदेशी और आदिवासी समूह की रक्षा के लिए बनाया गया , छठी अनुसूची के कारण पूर्वोत्तर राज्यों के मूल निवासी और आदिवासी लोगों को महत्वपूर्ण स्वायतता प्राप्त है।
    छठी अनुसूची में पूर्वोत्तर के चार राज्यों 1.असम 2. मेघालय 3. त्रिपुरा और 4. मिजोरम के जनजाति क्षेत्र के प्रशासन से संबंधित विशेष प्रावधान है। जबकि पांचवी अनुसूची में 10 राज्यों अर्थात 1.आंध्र प्रदेश 2.,छत्तीसगढ़ 3.गुजरात 4. हिमाचल प्रदेश 5.झारखंड 6.मध्य प्रदेश 7.महाराष्ट्र 8.उड़ीसा 9.राजस्थान और 10.तेलंगाना है।
    क्योंकि हिमालय राज्यों में आने वाले सभी राज्य के क्षेत्र की प्रकृति अविकसित है, यहां पर पिछड़े हुए आबादी का पूर्ण अस्तित्व है और क्षेत्र के सामान्य आबादी के बीच पर्याप्त असमानता भी है। इस प्रकार के एक विशेष भूभाग में निवास करने वाले समुदाय को अनुसूचित घोषित करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, पूर्व में भी जब उत्तराखंड राज्य उत्तर प्रदेश से अलग नहीं हुआ था ,इस क्षेत्र को अविकसित माना गया था ।और इस क्षेत्र के विकास के लिए उत्तर प्रदेश शासन द्वारा पर्वतीय विकास विभाग का पुनर्गठन किया था। और इस क्षेत्र के युवकों को शिक्षा, सेवाओं आदि में आरक्षण की भी व्यवस्था थी। दुर्भाग्य है की उत्तर प्रदेश से अलग होते उत्तराखंड राज्य पुनर्गठन होने पर आरक्षण व्यवस्था का लाभ समाप्त हो गया है ।उत्तराखंड सरकार को राज्य के हित में और इसके समग्र विकास हेतु इस क्षेत्र के समुचित विकास के लिए इसे पिछड़ा क्षेत्र मानते हुए अनुसूचित स्टेटस दिया दिए जाने का निर्णय अविलंब लिया जाना चाहिए।

जीवन चंद्र उप्रेती पूर्व अपर सचिव लोकायुक्त उत्तराखंड
महासचिव,
भारत की लोक जिम्मेदार पार्टी।, केंद्रीय अध्यक्ष पर्वतीय महासभा

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