युग ऋषि वेद मूर्ति पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का आलेख संसार दर्पण के समान

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🌴२० सितंबर २०२५ शनिवार 🌴
आश्विन कृष्णपक्ष चतुर्दशी २०८२
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‼️ऋषि चिंतन ‼️
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❗➖जैसी हमारी दृष्टि➖❗
‼️➖वैसी हमारी सृष्टि➖‼️
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👉 संसार दर्पण के समान है। जैसे कुछ हम स्वयं हैं, वैसा ही हमारा संसार है। कहते हैं कि हर आदमी की दुनिया अलग है। यह ठीक भी है, जैसा वह स्वयं है वैसी उसकी दुनिया होगी। जो मनुष्य क्रोधी है उसका सबसे झगड़ा होगा; फलस्वरूप उसे सारी दुनिया झगड़ालू मालूम पड़ेगी। बेईमान, चोर, ठग और दुष्ट प्रकृति के मनुष्य दूसरों को अपने ही जैसा समझते हैं और दूसरों पर तरह-तरह के आक्षेप लगाया करते हैं। आलसी, दरिद्र, ओछी प्रकृति के लोग अपने आस-पास लोगों पर तरह-तरह के दोषारोपण करते हैं कि वे उन्हें उठने नहीं देते,बढ़ने नहीं देते, रोकते हैं, सताते हैं। सच बात यह है कि संसार का व्यवहार कुएँ की आवाज की तरह है। पक्के कुएँ में मुँह करके जैसी आवाज हम करते हैं, ठीक वैसी ही शब्दों की प्रतिध्वनि वापस ले आती है। जो प्रशंसा योग्य है उसे प्रशंसा प्राप्त होती है, जो सहायता का अधिकारी है उसे सहायता मिलती है, जो आदर का पात्र है उसे आदर मिलता है और जो निंदा, घृणा, तिरस्कार, अपमान और दंड का पात्र है उसे यह वस्तुएँ जहाँ भी जाएगा वहीं पहले से ही तैयार रखी हुई मिलेंगी।
👉 संसार में बुरे तत्त्व बहुत हैं, पर अच्छे तत्त्व उनसे भी अधिक हैं। ऐसा न होता तो कोई आत्मा यहाँ रहने को तैयार न होती। जो गुणवान हैं, शक्तिवान हैं, विचारवान हैं, सहृदय और उदार हैं, उन्हें निश्चित रूप से अपना भाग्य उत्तम मिलेगा। “मनस्वी इमर्सन” कहा करते थे कि “मुझे “नरक” में रखा जाए तो मैं वहाँ भी अपने सद्‌गुणों के कारण स्वर्ग बना लूँगा। जो बुरे आदमी हैं, वे स्वर्ग में रहकर भी नरक की यातना भोगेंगे। कितने ही अमीर चिंताओं की ज्वालाओं में जलते रहते हैं और कितने ही गरीब स्वर्गीय सुख में दिन काटते हैं। अमेरिका का धनकुबेर हेनरी फोर्ट धन की लिप्सा में अपनी पाचनशक्ति गँवा बैठा था। वह जब अपने सुविस्तृत कारखानों के मजदूरों को मोटी रोटी खाते देखता था तो वह कहता था कि इन मजदूरों के भाग्य पर मुझे ईर्ष्या होती है। वह हाथ मलता था और कहता था कि “हे ईश्वर! काश मैं भी हेनरी न होकर बलवान पाचनशक्ति वाला मजदूर होता है तो कितना सुखी होता।
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“गायत्री के चौदह रत्न” पृष्ठ ४०
🍁।।पं श्रीराम शर्मा आचार्य।।🍁
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