आखिर क्यों की जाती है 13वीं पढ़िए जीवन चंद्र उप्रेती का आलेख

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मृत्यु के उपरांत तेरवी क्यों ?

हिंदू धर्म के अनुसार मृत्यु के उपरांत उसकी आत्मा की शांति के लिए तेरवी भोज की परंपरा निभाई जाती है।
गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद तेरवी तक आत्मा अपने घर के सदस्यों के बीच रहती है। उसके पश्चात उसकी यात्रा दूसरे लोक के लिए प्रारंभ होती है और उसके कर्मों का हिसाब किया जाता है ।यमलोक में उसे उसके किए कर्मों का परिणाम दिखाया जाता है। इस दौरान लगभग 24 घंटे तक आत्मा यमलोक में रहती है। तदनुपरांत यमदूत उसे परिवार जनों के पास छोड़ देते हैं, जो निर्बल स्थिति में मृत्यु लोक से यमलोक तक यात्रा कर पाने में असमर्थ होने के कारण भटकती रहती है।
गरुड़ पुराण के अनुसार उसके परिजन मृतक आत्मा की शांति और उसे बल प्रदान करने हेतु नियमित रूप से 10 दिनों तक पिंडदान करते हैं । इस बीच उसकी मृत्यु आत्मा के विभिन्न अंगों का निर्माण होता है। 11वे एवं 12वे दिन के पिंड दान से शरीर पर मांस और त्वचा का निर्माण होता है और 13 वे दिन, 13 वीं के उपरांत आत्मा को बल प्राप्त होता है और मृत्यु लोक से यमलोक की यात्रा करने में समर्थ होती है। आत्मा को मृत्यु लोक से यमलोक पहुंचने में करीब 1 साल का समय लगता है ।किया गया पिंडदान आत्मा को वर्ष भर भोजन के रूप में प्राप्त होता है। तेरह ब्राह्मणों को तेरवी में भोजन करने से आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है। और परिवारजन शोक मुक्त हो जाते हैं ।
वैज्ञानिक आधार पर डिप्रेशन से बचने के लिए तेरवी आवश्यक है। 13 दिनों से अधिक शोक जीवन के लिए संकट पूर्ण है । डब्लू अह ओ के इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज और अमेरिका मानसिक रोग समिति ने इस बात की पुष्टि की है।
गरुड़ पुराण के अनुसार पातक लगने के 13 वें दिन क्रिया करके ब्राह्मण भोज के बाद ही पूजा कार्य शुरू करना चाहिए।

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जीवन चंद्र उप्रेती

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