ऋषि चिंतन: वेद मूर्ति तपोनिष्ठ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के विचार

🥀// ०५ मार्च २०२५ बुधवार //🥀
//फाल्गुन शुक्लपक्ष षष्ठी २०८१//
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‼ऋषि चिंतन‼
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❗आप “ब्रह्मराक्षस” न बनें❗
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👉 “बुद्धितत्त्व” दैवी विभूतियों में एक उच्चकोटि का वरदान है। इसका उपयोग अधिक से अधिक “ईमानदारी” से होना चाहिए। “श्रम” और “व्यापार” के दुरुपयोग से जो हानि होती है, वह सीमित है क्योंकि उनका दायरा छोटा और शक्ति स्वल्प है। परंतु “बुद्धि” तो गैस या बारूद की तरह है। सदुपयोग से बलवान शत्रु को आसानी से इसके द्वारा मार भगाया जा सकता है और यदि दुरुपयोग किया जाए तो अपना सर्वनाश होने में भी कुछ देर नहीं लगेगी। नादानी से गैस या बारूद के गोदामों को भड़का दिया जाए तो क्षणभर में विस्फोट उपस्थित हो जाएगा। मस्तिष्क से निकलने वाली बिजली बहुत ही सावधानी और सतर्कता से बरती जानी चाहिए, अन्यथा असंख्य जनसमूह के भाग्य पर उसका घातक प्रभाव हो सकता है। जो ब्राह्मण “आत्मविश्वास” की जगह “अंधविश्वास” फैलाते हैं, जो वकील “न्याय” वृद्धि के स्थान पर “झूठी मुकदमेबाजी” खड़ी कराते हैं, जो डॉक्टर “प्राकृतिक नियमों” पर चलने का उपदेश न देकर “दवाओं की गुलामी” सिखाते हैं; जो लेखक “विकारों को भड़काने वाली” निकृष्ट रचनाएँ रचते हैं; जो कवि “मातृजाति को अपमानित करने वाले” निर्लज्ज गीत गाते हैं; जो प्रचारक “कलहकारी प्रचार” करते हैं; जो नेता “अनुयायियों को उल्लू” बनाते हैं; जो साधु-संत योग का सच्चा धर्म प्रकट करने की अपेक्षा अपने को और “दूसरों को भ्रम में डालते हैं;” जो शासक प्रजा की “उन्नति, सुरक्षा” करने के स्थान पर “लूट-खसोट” पर उतर आते हैं; जो पथप्रदर्शक “अनजानों को गुमराह” करते हैं, ये अपने “बुद्धि-व्यवसाय” में “भयंकर बेईमानी” के कारण कुछ समय के लिए विलासिता के साधन इकट्ठे कर सकते हैं; पर जनता-जनार्दन के साथ वे ऐसा अपराध करते हैं, जिसकी तुलना और किसी पातक से नहीं हो सकती। बुद्धि का दुरुपयोग करके लोगों को उलटे मार्ग पर भटका देना पहले दर्जे का शैतानी कर्म है; ऐसे लोगों के लिए भारतीय धर्मवेत्ताओं ने ‘ब्रह्मराक्षस’ शब्द का प्रयोग कर उनकी तीव्र निंदा की है।
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प्रतिष्ठा कैसे प्राप्त करें ? पृष्ठ-१६
🪴पं. श्रीराम शर्मा आचार्य 🪴
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