ऋषि चिंतन : वेद मूर्ति तपोनिष्ठ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के विचार

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‼ऋषि चिंतन‼
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❗➖विचार शक्ति➖ ❗
➖के➖
‼️– चमत्कारिक परिणाम– ‼️
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👉 जो जैसा सोचता और करता है, वह वैसा ही बन जाता है। मनुष्य का विकास और भविष्य उसके विचारों पर निर्भर है। जैसा बीज होगा, वैसा ही पौधा उगेगा। जैसे “विचार” होंगे, वैसे कर्म बनेंगे और जैसे कर्म करेंगे, वैसी परिस्थितियाँ बन जाएँगी। इसीलिए तो कहा गया है कि मनुष्य अपनी परिस्थितियों का दास नहीं, वह उनका निर्माता, नियंत्रणकर्त्ता और स्वामी है। वास्तविक शक्ति साधनों में नहीं, “विचारों” में सन्निहित है।
👉 कहते हैं मनुष्य के भाग्य का लेखा-जोखा “कपाल” में लिखा रहता है। “कपाल” अर्थात् “मस्तिष्क” । “मस्तिष्क” अर्थात् “विचार” । अतः मानस शास्त्र के आचार्यों ने यह उचित ही संकेत किया है कि भाग्य का आधार हमारी विचार पद्धति ही हो सकती है। विचारों की प्रेरणा और दिशा अपने अनुरूप कर्म करा लेती है। इसीलिए तो कहते हैं कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है।
👉 “विचार” सूक्ष्म स्तर का कर्म है। “कार्य” का मूल रूप “विचार” है। समय की तरह विचार-प्रवाह को भी सत्प्रयोजनों में निरत रखा जाना चाहिए। जिस प्रकार समय को योजनाबद्ध कर सफलता पाई जाती है, उसी प्रकार विचार-प्रवाह को भी सुनियोजित कर, लक्ष्य विशेष से जोड़कर लाभान्वित हुआ जा सकता है।
👉 कोई भी प्रेरणा पहले “विचार” के रूप में ही उठती है और मस्तिष्क उसके अनुसार योजना बनाने में निरत हो जाता है अर्थात् विचार मनुष्य को कोई कार्य करने तथा किसी दिशा में प्रवृत्त करने का भी कारण है। मनुष्य विचार करने में स्वतंत्र है। भले ही वैसी क्रिया की उसे स्वतंत्रता न हो। इसीलिए “विचार” जब आकांक्षा का रूप धारण कर लेते हैं तो व्यक्ति उस आकांक्षा को पूरा करने के अवसर की ताक में रहता है। अपराध कर्म या अवांछनीय कार्यों के जनक अपराधी और अवांछनीय विचार ही हैं। बाहरी परिस्थितियाँ तो विचारों के अनुरूप ही प्रभाव डालती हैं। अतः किसी दुष्कर्म का कलंक छुटाने के लिए यह नहीं कहा जा सकता कि वह आकस्मिक या परिस्थितिवश हुआ। वस्तुतः उसकी जड़ हमारे विचारों में, हमारे चिंतन में अनौचित्य के रूप में पहले ही जम चुकी थी।
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🪴संकलन – संपादन🪴
‼️- युग निर्माण योजना मथुरा- ‼️
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