आखिर क्यों मनाई जाती है शिवरात्रि पढ़िए जीवन चंद्र उप्रेती का आलेख

महाशिवरात्रि महात्म्य
संक्षिप्त शिव पुराण रूद्र संहिता खंड 6 पुराने संस्करण में पृष्ठ 99 से 100 में लिखा है कि एक समय अपने पुत्र नारद जी के प्रश्न उत्तर देते हुए श्री ब्रह्मा जी ने कहा कि है पुत्र अपने सृष्टि के उत्पत्ति कर्ता के विषय में जो प्रश्न किया है ,उसका उत्तर सुन।
प्रारंभ में केवल एक तत्सतब्रह्म ही शेष था ।सब स्थान पर प्रलय था। उस निराकार परमात्मा ने अपना स्वरूप शिव जैसा बनाया ।उसको सदाशिव कहा जाता है ।उसने अपने शरीर से एक स्त्री निकाली, जो उनके अपने श्री अंग (शरीर )से कभी अलग होने वाली नहीं थी। वह स्त्री दुर्गा ,जगदंबे , प्रकृति देवी तथा त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) की जननी (माता) कहलाई,जिसकी आठ भुजाएं हैं, इसी को शिवा भी कहा है।
काल ब्रह्म ( सदाशिव) और दुर्गा (शिवा) से विष्णु जी की उत्पत्ति हुई ।ब्रह्मा एवं शिव की भी उत्पत्ति इसी से हुई।
श्री मार्कंडेय पुराण के अध्याय 25 में 131 पृष्ठ पर कहा गया है कि रजगुण ब्रह्मा जी, सद्गुण विष्णु तथा तम गुण शंकर ,यह तीनों ब्रह्मा के प्रधान शक्तियां हैं। और यही तीन देवता यही तीन गुण हैं।
लेकिन काल ब्रह्म (शिव) को गुनातीत यानी तीनों गुणों से परे माना जाता है। यही सदाशिव है। पत्नी दुर्गा ( शिवा) है।
इसकी पुष्टि गीता अध्याय 14 श्लोक 3 से 5 में होती है ।
शिव पुराण के अनुसार शिवरात्रि पूजा का कारण है …. भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह की मान्यता है। इस दिन भगवान शिव ने वैराग्य छोड़ कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था और माता पार्वती से विवाह किया था ।इसी वजह से हर साल शिव गौरी के विवाह उत्सव के रूप में महाशिवरात्रि मनाई जाती है। महाशिवरात्रि का त्यौहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन के चंद्र महीने के पहले भाग (रात की शुरुआत अंधेरे से होती है …ढलती हुई) के 14 वे दिन मनाया जाता है।
कहा जाता है इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से वह जल्द प्रसन्न होते हैं।
शिवरात्रि के दिन भगवान शिव का शिवलिंग अवतार हुआ था। इसी तिथि पर सर्वप्रथम शिव को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए उनके शिवलिंग स्वरूप की भगवान विष्णु और ब्रह्मा द्वारा पूजा अर्चना हुई थी ।
शिवरात्रि हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। महाशिवरात्रि साल में एक बार आती है। शिवरात्रि को शिव की पूजा तथा महाशिवरात्रि को शिव और माता पार्वती की पूजा होती है।
जो दांपत्य जीवन में मधुरता लाती है।
वर्षा भर मैं 12 शिवरात्रि तथा एक महाशिवरात्रि होती है।
सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मगन लोग ,महाशिवरात्रि को शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं। परंतु साधकों के लिए, यह वह दिन है, जिस दिन वह कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे ।आत्मा सत्कार की यह रात्रि है।
जीवन चंद्र उप्रेती,
पूर्व अपर सचिव लोकायुक्त उत्तराखंड सरकार
केंद्रीय अध्यक्ष पर्वतीय महासभा
