ऋषि चिंतन: वेदमूर्ति पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के प्रेरणादाई विचार

🥀// १० मार्च २०२५ सोमवार //🥀
//फाल्गुन शुक्लपक्ष एकादशी २०८१//
➖➖➖➖‼️➖➖➖➖
‼ऋषि चिंतन‼
➖➖➖➖‼️➖➖➖➖
〰️〰️〰️➖🌹➖〰️〰️〰️
धर्म का पालन करने में ही कल्याण है
〰️〰️〰️➖🌹➖〰️〰️〰️
👉 यतोऽभ्युदय निःश्रेयससिद्धिः स धर्मः । अर्थात “धर्म” वह है, जिससे इस लोक में अभ्युदय हो और अंत में मोक्ष की प्राप्ति हो।” इस न्याय के अनुसार जिसने “धर्म” का पालन किया, वही अपने जीवन को सार्थक बना सका। मनुष्य, पशु, पक्षी आदि सभी अपने-अपने स्वाभाविक “धर्म” का निर्वाह करते हैं। “धर्म” ही इस लोक और परलोक का निर्माता है। यही एक ऐसा सुगम मार्ग है, जो जीवननैया को पार लगाने में सहायक होता है।
👉 “धर्म” उस सर्वव्यापक परमात्मा का श्रेष्ठ विधान है। वहीं संपूर्ण जगत को धारण करने वाला है। उसी के सहारे पृथ्वी और आकाश टिके हुए हैं। समुद्र अपनी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता, यह उसका “धर्म” है। जलवृष्टि करना मेघ का “धर्म” है। दग्ध करना अग्नि का “धर्म” है। इस प्रकार सब अपने-अपने “धर्म” पर अटल हैं।
👉 एक बार एक राजा ने अपराधी के तर्क का उत्तर देते हुए कहा-“सर्प का “धर्म” काटना है, वह मनुष्य को काट खाए तो उसका कुछ अपराध नहीं है। अपराध उस मनुष्य का है, जिसने सर्प के बिल में हाथ डालकर अपने स्वभाव के विरुद्ध कार्य किया।”
👉 “ईश्वर” जैसे अनादि और सनातन है, वैसे ही “धर्म” भी सनातन है। जिसने “धर्म” के विरुद्ध कार्य किया, वही नष्ट हो गया। रावण, कंस, दुर्योधन आदि अनेक महाबलवानों का उदाहरण दिया जा सकता है, जो “धर्म” के विपरीत चलकर नष्ट हो गए। उनके कुलों में कोई रोने वाला भी उस समय शेष नहीं बचा।
👉 विभिन्न मत-मतांतरों को “धर्म” कह दिया गया है। विभिन्न संप्रदायों को धर्म कहा गया है। परंतु न तो मत-मतांतर धर्म हैं और न संप्रदाय ही। वे तो “धर्म” की ओर ले जाने वाले मार्ग हैं। उनमें से किसी मार्ग को अपना लीजिए, वह आपको एक लक्ष्प की ओर ले जाएगा। उन मार्गों में जो शुभ कर्म हैं, उन्हीं का समूह “धर्म” है। उसमें जो विभिन्न आडंबर आदि हैं, वे यथार्थ न होने से त्याज्य हैं। अतः “धर्म” श्रेष्ठ कर्मों का ही रूपांतर है।
👉 मनुष्य यह मान ले कि आत्मा सबकी एक ही है, तो उसकी समझ में यह बात आ जाएगी कि दूसरे को दुःख हुआ तो अपने को ही हुआ। यदि आपने किसी को सुख पहुँचाया तो प्रकारांतर से अपने को ही पहुँचाया। अर्थात दूसरे का दुःख-क्लेश अपना ही मानना चाहिए।
➖➖➖➖🪴➖➖➖➖
धर्म रक्षा से ही आत्मरक्षा होगी पृष्ठ-०३
🪴पं. श्रीराम शर्मा आचार्य 🪴
➖➖➖➖🪴➖➖➖➖
