विश्व योग दिवस एवं योगिनी एकादशी व्रत

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विश्वयोग-दिवस एवं योगनी एकादशी व्रत:- शनिवार 21 जून

करें योग रहें निरोग

योग हमारी जीवन पद्धति है। वैदिक संहिताओं में उल्लेख है कि हमारे सप्त ऋषियों में से एक महान ऋषि अगस्त्य मुनि ने भारत में योग को जनसामान्य के लिए सहज एवं सर्वसुलभ बनाने में अद्भुत योगदान दिया। ईसा पूर्व दूसरी सदी में महर्षि पतंजलि ने ‘पतंजलि योग सूत्र’ नामक दिव्य कृति के माध्यम से सभी का योग से परिचय कराया। भारतीय परंपरा में तो योग एक जीवन पद्धति थी, इसीलिए हमारे ऋषि प्रकृति के सान्निध्य में रहते थे।

योग से मिलती है शांति : वर्तमान समय में अगर हम वैश्विक स्तर पर देखें तो हर व्यक्ति को शांति की तलाश है और योग से मानसिक शांति के साथ शांतिपूर्ण वातावरण का भी निर्माण किया जा सकता है। आज हम चारों ओर व्यक्तिगत, सामूहिक और वैश्विक स्तर पर बढ़ते संघर्ष को देख रहे हैं। यह मानसिक अशांति और बदलती जीवन शैली के कारण भी उत्पन्न हो सकता है। योग में शारीरिक, मानसिक, वैचारिक आदि सभी समस्याओं का समाधान निहित है। जब हम योग से जुड़ते हैं तो न केवल शरीर, आत्मा और भावनाओं से जुड़ते हैं, बल्कि विराट ब्रह्मांड और विराट सत्ता से भी जुड़ जाते हैं। फिर हम न केवल अपनी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, बल्कि पर्यावरण संकट और जलवायु परिवर्तन का सामना भी कर सकते हैं। इसलिए जीवन का एक ही मंत्र है, ‘करें योग, रहें निरोग’।

शांति और योग है हमारी शक्ति : वर्तमान समय में पूरा विश्व शक्ति की तलाश में है, परंतु भारत ने हमेशा से शांति और योग की शक्ति पर विश्वास किया है। भारत के पास सदियों से योग रूपी शक्ति है, जिसके बल पर वह शांति, समरसता और सद्भाव का संदेश प्रसारित कर रहा है। भारत अपनी यौगिक, बौद्धिक व सांस्कृतिक शक्ति अर्थात् ‘साफ्ट पावर’ के बल पर जीते हुए पूरे विश्व को सौहार्द का संदेश दे रहा है। भारत के पास सदियों से योग रूपी ‘साफ्ट पावर’, ‘स्मार्ट पावर’ और ‘हेल्थ पावर’ है, जिसके बल पर हम पूरे विश्व को एक दिशा प्रदान कर सकते हैं। हमारा ‘साफ्ट पावर’ भारतीय संस्कृति, सांस्कृतिक गतिविधि, अध्यात्म और योग जैसे अमूर्त दर्शन में निहित है। आने वाली पीढ़ियां भी इस ‘साफ्ट पावर’ के साथ अपना विकास करती रहें तो वास्तव में हमने जो खोया है, उसे दोबारा प्राप्त कर सकते हैं।

करें योग, रहें निरोग। स्वस्थ रहें, सुखी रहें। सदैव मुस्कराते रहें और सदैव आप प्रसन्नचित रहें ।

साभार आचार्य प्रकाश बहुगुणा के आलेख से

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