ऋषि चिंतन: युग ऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का प्रेरणादायक व्याख्यान

🥀// ०६ मार्च २०२५ गुरुवार //🥀
//फाल्गुन शुक्लपक्ष सप्तमी २०८१//
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‼ऋषि चिंतन‼
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❗➖प्रामाणिकता रखिए➖❗
➖और➖
‼️आत्मसम्मान प्राप्त कीजिए‼️
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👉 “आत्मसम्मान” का राजपथ यही है कि कारोबार में आचरण में “प्रामाणिकता” रखिए। बुद्धिजीवी हैं तो अपने ज्ञान का अपने लिए और दूसरों के लिए ऐसा प्रयोग करिए जिससे पथभ्रष्टता, अनीति, छल, कपट, दुराव, शोषण, भ्रष्टता, अज्ञान और अशांति की वृद्धि न हो। “बुद्धि” को पवित्र तत्त्व समझिए और उसे “धर्म” के साथ ही प्रयुक्त होने दीजिए। वेश्या अपने शरीर का अनुचित उपयोग होने देती है इसलिए उसे तिरष्कृत एवं घृणित ठहराया गया है। “बुद्धि” का “व्यभिचारिणी” होने देना “वेश्यावृत्ति” से असंख्य गुना घृणित एवं पापपूर्ण है। सचाई से , अंतःकरण की साक्षी देकर जो बात आप जिस प्रकार ठीक समझते हैं उसे उसी प्रकार प्रकट करिए। इससे आपकी आमदनी कदापि कम नहीं होगी। अनीति का पैसा चोरों के घर, वकीलों के घर, डॉक्टरों के घर, वेश्या के घर चला जाता है। मुफ्तखोर उसे खाते-उड़ाते हैं। अपने लिए वह क्लेश ही छोड़ता है। धैर्यपूर्वक यदि कम पैसा कमाया गया है तो विश्वास रखिए वह आपके काम आवेगा, आनंद की वृद्धि का साधन होगा।
👉 “प्रामाणिकता” के साथ व्यापार करना एक प्रकार के “यज्ञ” के समान है। उसमें निजी लाभ भी है और दूसरों का लाभ भी, व्यापारी को मुनाफा मिल जाता है और ग्राहक को संतोषजनक वस्तु। दोनों हो प्रसन्न रहते हैं और आगे के लिए दोनों का मन मिला रहता है। प्रशंसा और आदरभाव का द्वार खुला रहता है सो अलग। किसी ग्राहक से एक दिन अनुचित लाभ लेकर बहुत-सा मुनाफा ले लेने की अपेक्षा, व्यापारी को इसमें अधिक लाभ है कि उचित रीति से थोड़ा लाभ ले। अधिक ठगा हुआ ग्राहक एक-दो बार से अधिक न आवेगा किंतु थोड़ा लाभ लेने पर वह बार-बार आवेगा, चिरकाल तक संबंध रखेगा और नए ग्राहक लावेगा। हिसाब लगाकर देख लीजिए अंततः वही व्यापारी अधिक लाभ से रहेगा जो थोड़ा मुनाफा लेता है, पूरा तोलकर देता है, पूरा तोलकर लेता है और कुछ कहकर, कुछ वस्तु नहीं भेड़ता।
👉 मनुष्य को न्यायपरायण बुद्धिजीवी बनना चाहिए, खरी मजदूरी करने वाले श्रमजीवी बनना, ईमानदारी का व्यापार मनुष्यता की शोभा है क्योंकि इसमें सब दृष्टि से लाभ रहेगा। पैसे की दृष्टि से लाभमें रहेगा, समाज में ऊँची निगाह से देखा जाएगा, ख्याति बढ़ेगी, प्रतिष्ठा प्राप्त होगी, झंझटों से बचेंगे और सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि अंतःकरण शांति और स्वस्थता अनुभव करेगा। आदर और प्रतिष्ठायुक्त आशीर्वाणी, मलयाचल को शीतल सुगंधित वायु की तरह चारों ओर प्रवाहित होगी, जिसके दिव्य प्रभाव से रोम-रोम में उल्लास भर जाएगा।
👉 प्रतिष्ठा, सम्मान, आदर और इज्जत का जीवन ही जीवन है। आप जो कुछ भी काम करते हैं, उसको ईमानदारी और प्रामाणिकता से घर दीजिए। खरे बनिए, खरा काम कीजिए , खरी बात कहिए। इससे आपका हृदय हलका रहेगा और निर्भयता अनुभव करेगा। “ईमानदारी”, “खरा आदमी”, “भलेमानस” ये तीन उपाधि यदि आपको अपने अंतस्थल से मिलती हैं तो समझ लीजिए कि आपने जीवनफल प्राप्त कर लिया “स्वर्ग का राज्य” अपनी “मुट्ठी” में ले लिया।
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प्रतिष्ठा कैसे प्राप्त करें ? पृष्ठ-१८
🪴पं. श्रीराम शर्मा आचार्य 🪴
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