आज का ऋषि चिंतन: श्रेष्ठता क्या है पढ़िए युग ऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के विचार

🥀 ०१ मई २०२५ गुरुवार 🥀
//वैशाख शुक्लपक्ष चतुर्थी २०८२//
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‼ऋषि चिंतन‼
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श्रेष्ठता धन से नहीं, धन्य कार्यों से
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👉 “पैसे की अधिकता” के कारण ही कोई मनुष्य “श्रेष्ठ” नहीं माना जा सकता। “श्रेष्ठ कार्य” ही मनुष्य को “श्रेष्ठ” बना सकते हैं। यदि पैसे ने आज तक किसी को श्रेष्ठ बनाया होता तो संसार के धनवान लोग किसी निर्धन को प्रतिष्ठा पाने ही न देते। वे एक के दस खरच करके समाज की सारी प्रतिष्ठा अपने लिए खरीद लेते।
👉 ऐसा नहीं कि धन प्रतिष्ठा के लिए बाधक है अथवा कोई धनवान प्रतिष्ठा पा ही नहीं सकता। धनवान प्रतिष्ठा पा सकते हैं और पाते हैं, किंतु वे जिनके धनोपार्जन के साधन पवित्र एवं उपयुक्त होते हैं और जिनका धन समाजसेवा के किन्हीं श्रेष्ठ कार्यों पर खरच होता है।
👉 “धन” को “धनवान” होने के लिए कमाना और रखते जाना अथवा केवल अपने पर ही खरच करना कोई अर्थ नहीं रखता। जो समाज के बीच धन कमाता और जोड़ता रहता है, जिसका पैसा आवश्यकता पर पीड़ितों अथवा समाज सेवा के काम में नहीं आता वह वास्तव में धनवान नहीं, धन का चोर है। “धन” किसी के अधिकार में क्यों न हो, वह समाज का ही है। क्योंकि उसकी प्राप्ति समाज से, समाज की सहायता से ही हुई है। उस धनवान को श्रेष्ठ ही कहा जाएगा जो समाज के धन को अपनी सुरक्षा में रखकर बढ़ाता और समयानुकूल उसका उपयुक्त भाग समाज-सेवा के कार्यों में खरच करता है। ऐसे धनवान श्रेष्ठियों को समाज का खजांची ही माना जाएगा और वे अपने पद एवं कार्य के अनुरूप प्रतिष्ठा के अधिकारी होंगे।
👉 तन, मन, धन तीन उपकरणों में से जो व्यक्ति कोई भी उपकरण समाज के श्रेष्ठ कामों में नियोजित करता है, उसे एक श्रेष्ठ मनुष्य ही:कहा जाएगा। केवल धनवान, बलवान अथवा महामना मात्र होने से कोई श्रेष्ठता का अधिकारी नहीं हो सकता। जिसका धन, बल और महामानवता समाज के किसी काम नहीं आती, वह अपने काम में कितना ही श्रेष्ठ एवं महान बनता रहे वस्तुतः समाज उसे श्रेष्ठ मानने और श्रेष्ठता में कृपणता ही बरतेगा।
👉 संसार में आज ऐसे लोगों की बहुतायत होती जा रही है जो पैसे को परमात्मा मानकर पूजते हैं और आशा करते हैं कि पैसे के कारण उन्हें भी पूजा जाए। किंतु उनकी यह इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकती। इस आर्थिक युग में भी समाज केवल पैसे के कारण किसी को तब तक प्रतिष्ठा नहीं दे सकता जब तक वह अथवा उसका पैसा समाज में श्रेष्ठ कार्यों का संपादन नहीं करते।
👉 अनेक लोग तो पैसे के इतने भक्त होते हैं कि उसका पैसा समाज सेवा के कार्यों में खरच होना तो दूर, उनके स्वयं के जीवन विकास में भी खरच नहीं हो पाता। धन को कमाना और केवल जमा करना ही उनका ध्येय होता है। यदि वे अपने पैसे को अपने विकास, अपने परिवार की उन्नति और बच्चों को विकसित बनाने में ही खरच करते रहें तब भी धन का कुछ अंश किसी न किसी बहाने समाज में आता रहे और एक दिन ऐसा आ सकता है कि वे और उनके बच्चे विकसित होकर धन कमाने के ध्येय और उसका सदुपयोग कर सकने की बुद्धि पा जाएँ।
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धनबल से मनुष्यता रौंदी न जाए पृष्ठ-१०
🪴पं. श्रीराम शर्मा आचार्य 🪴
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